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श्री अरनाथ जिन पूजन व्रत सयम बाहयोपचार है ज्ञान क्रिया अन्तर उपचार ।
मान और सम्मान हलाहल विष सम इसे न कर स्वीकार ।। ॐ ही श्री अनाथ जिनेन्द्राय कामबाण विध्वसनाय पुष्प नि । परमधर्म अपरिग्रह मय आकिंचन चरू लाऊँ। परद्रव्यो से मूर्छा त्यागूं निज स्वभाव मे आऊँ।श्री अरनाथ।।५।। ॐ ही श्री अरनाथ जिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय, नैवेद्य नि । परम धर्म सम्यक्त्व मयी दीपक की ज्योति जलाऊँ। स्वपर प्रकाशक भेदज्ञान से चिर मिथ्यात्त्व भगाऊँ ।।श्री अरनाथा६।। ॐ ह्री श्री अरनाथ जिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीप नि । परम ज्ञानमय धर्म धूप ले शुक्ल ध्यान कब ध्याऊँ। अष्टम गुणस्थान पा श्रेणी चढ घातियानशाऊँ ।।श्री अग्नाथ ॥७॥ ॐ ह्री श्री अरनाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्म विध्वसनाय धूप नि । यथाख्यात चारित्र प्राप्तकर मोहक्षीण थल पाऊँ । सकल निकल परमातम बनकर परम मोक्ष फलपाऊँ ।।श्री अग्नाथ ।।८।। ॐ ह्री श्री अरनाथ जिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्ताय फल नि परम धर्ममय रत्नत्रय पथ पाऊँ अर्घ चढाऊँ। निज स्वरूप सौन्दर्य प्रगटकर अनर्घपद पाऊँ ॥श्री अरनाथा।९।। ॐ ह्री श्री अरनाथ जिनेन्द्राय अनर्घपद प्राप्ताय अयं नि ।
श्री पंच कल्याणक फागुन शुक्ला तृतिया के दिन अपराजित तजकर आए । मगल सोलह स्वप्न मात मित्रादेवी को दर्शाए ।। नगर हस्तिनापुर के अधिपति नृपति सुदर्शन हर्षाए । धनपति रत्नो की वर्षाकर अरहनाथ के गुण गाए ॥१॥ ॐ ह्री श्री अरनाथ जिनेन्द्राय फाल्गुन शुक्ल तृतीया गर्भ कल्याणक प्राप्ताय अयं नि । पगसिर शुक्ला चतुर्दशी को अरनाथ जग मे आए । मेरु सुदर्शन पाडुक वन मे पाडुक शिला, देव भाए ।