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जैन पूजाजलि तेज पुज शुद्धातम तस्व जब निज अनुभव में होता मस्त ।
नय प्रमाण निक्षेप आदि का भी समूह हो जाता अस्त ।। सर्व प्रथम इन्द्राणी ने दर्शन कर जीवन धन्य किया । पाडुकशिला विगजित कर सुरपति ने प्रभु अभिषेक किया ॥२॥ ॐ ह्री श्री बैशाख शुक्ला प्रतिपदाया जन्ममगल प्राप्ताय श्री कुंथुनाथ जिनेंद्राय अयं नि शुभ बैशाख शुक्ल एकम को उरछाया वैराग्य अपार । यह ससार अनित्य जानकर जिनदीक्षा का किया विचार।। तिलक वृक्ष के नीचे दीक्षा लेकर धार लिया निजध्यान । कुन्थुनाथ प्रभु का तप कल्याणक इन्द्रो ने किया महान ।।३।। ॐ ह्री श्री बैशाख शुक्ला प्रतिपदाया तपोमगलप्राप्ताय श्रीकुथुनाथ जिनेन्द्राय
अर्घ्य नि।
मोह नाशकर चैत्र शुक्ल तृतीया को पाया केवलज्ञान । समवशरण की रचना करके हुआ इन्द्र को हर्ष महान ।। खिरी दिव्यध्वनि जगजीवो को आपने किया ज्ञानप्रदान । कन्थनाथ ने मोक्ष मार्ग दर्शाकर किया विश्व कल्याण ।।४।। ॐ ह्री श्री चैत्र शुक्लातृतीया ज्ञानमगल प्राप्ताय श्री कुथनाथ जिनेद्राय अर्घ्य नि । श्री सम्मेदशिखर पर आकर प्रतिमा योग किया धारण । अन्तिम शुक्लध्यान को धर कर स्वामीहुए तरण तारण ।। प्रभु बैशाख शुक्ल एकम को शेष कर्म का कर अवसान । कूट ज्ञानधर से है पाया कुथुनाथ प्रभु ने निर्वाण।।५।। ॐ ही श्री बैशाख शुक्ल प्रतिपदाया मोक्षमगलप्राप्ताय श्री कुथुनाथ जिनेन्द्राय अध्य नि
जयमाला कु थुनाथ करुणा के सागर करणादानी कृपा निधान । कुमति निकन्दन कल्मष भजन को छेदी कृती महान ॥१।। षष्टम् चक्की दीना नाथ दया के सागर दया निधान। भरत क्षेत्र के षटखण्डो पर राज्य किया बहुतकाल बीता ।।२।।