________________
२३९
श्री कुन्थुनाथ जिनपूजन राग द्वेष शुभ अशुभ भाव से होते पुण्य पाप के बध ।
साम्य भाव पीयाषामृत पीने वाला ही है निर्बन्ध । । ॐ ह्रीं श्री कुथुनाथ जिनेन्द्राय अक्षयपद प्राप्ताय अक्षत नि इस आश्रव को जान दुखमय पाय पुण्याश्रव हरूँ। प्रभु कामवाण विनाशहित मिथ्यात्त्व के मलको हरूँ श्री कुन्थु ।।४।। ॐ ही श्री कुथुनाथ जिनेन्द्राय कामवाण विध्वसनाय पुष्प नि मैं बन्ध तत्त्व स्वरुप समझू आत्मचरू ले परिहरूँ। प्रभु क्षुधारोग विनष्टहित मिथ्यात्त्व के मल को हरूँ ।। श्री कुन्थु ।।५।। ॐ ह्रीं श्री कु थुनाथ जिनेन्द्राय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्य नि ।। अब तत्त्व सवर जानकर निज ज्ञान का दीपक धरूँ। कज्ञान कुमति विनाशकर मिथ्यात्त्व के मल को हरूँ ॥श्री कुन्थु ।।६।। ॐ ह्री श्री कु थुनाथ जिनेंद्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीप नि ।। मे निर्जरा का तत्त्व समझें ध्यान धूप हृदय धरूँ । सब बद्धकर्म अभावहित मिथ्यात्त्व के मल को हरूँ ।। श्री कुन्थु ।।७।। ॐ ही श्री कु थुनाथ जिनेद्राय अष्टकर्म विध्वसनाय धूप नि ।। मै मोक्ष तत्व महान निश्चय रूप अन्तर मे धरूँ। सम्यक स्वरूप प्रकाशफल सम्यक्त्व को दृढतर करूँ॥श्री कुन्थु ।।८।। ॐ ही श्री कुथुनाथ जिनेद्राय महा मोक्षफल प्राप्ताय फल नि । मै ज्ञान दर्शन चरितमय निज अर्थ रत्नत्रय धरूं । सम्यक प्रकार अनर्घपद पा शाश्वत सुख को करूं ।।श्री कुन्थु ।।९।। ॐ ह्री श्री कुथुनाथ जिनेन्द्राय अनर्धपद प्राप्ताय अयं नि ।
श्री पंचकल्याणक श्रावण कृष्णा दशमी के दिन तज सर्वार्थसिद्धि आये । कुन्थुनाथ आगमन जानकर श्रीमती मा हर्षाये । गर्भ पूर्व छह मास जन्म तक शुभरत्नो की धार गिरी । नगर हस्तिनापुर शोभा लख लज्जित होती इन्द्रपुरी।।१।। ॐ ही श्री श्रावण कृष्णदश्याम् गर्भमगल प्राप्ताय श्री कुथुनाथ जिनेन्द्राय अयं नि । सूर्यसेन राजा के गृह मे कुन्थुनाथ ने जन्म लिया । शुभ बैशाख शुक्ल एकम का तुमने दिवस पवित्र किया ।