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जैन पूजांजलि जाग जाग रे जाग अभी सुमिज मातम का करले भान ।
धर्म नहीं दुखरुप धर्म तो परमानंद स्वरुप महान ।। निजस्वभावमय शुक्लध्यान फल परमोसम उर में लाऊँ। शुद्ध बुद्ध अविरुद्ध मोक्ष पा अविनश्वर पदको पाऊँपरम. ॥८॥ ॐ ही श्री पुष्पदंत जिनेन्द्राय महामोक्षफल प्राप्ताय फल नि. । निज स्वभावमय शुक्लध्यानफल परमोत्तम उर में लाकैं। निश्चर रत्नत्रय की महिमा से अनर्थ पदको पाऊंपरम. ॥९॥ ॐ ही श्री पुष्पदंत जिनेन्द्राय अनपद प्राप्ताय अयं नि ।
श्री पंचकल्याणक फागुन कृष्णा नवमी को प्रभु आरण स्वर्ग त्याग आए । रानी जयरामा उर मे अवतार लिया सब हाए । पन्द्रहमास रत्न वर्षाकर धनपति मन मे मुसकाए । पुष्पदत के गोत्सव पर सरागना मगल गाए ॥१॥ ॐ ही श्रीफागुनकृष्णनवम्या गर्भमगलप्राप्ताय पुष्पदंत जिनेंद्राय अयं नि । मगसिर शुक्ला एकम को काकदीपुर अति धन्य हुआ । नृप सुग्रीवराज प्रागण मे सुख का ही साम्राज्य हुआ ।। मेरु सुदर्शन पाडुकवन मे क्षीरोदधि से नव्हन हुआ । देवो द्वारा पुष्पदंत का दिव्य जन्म कल्याण हुआ ॥२॥ ॐ ह्री मगसिर शुक्ला प्रतिपदादिनेजन्ममगलप्राप्ताय पुष्पदतजिनेंद्राय अयं नि । मगसिर शुक्ला एकम के दिन अन्तर मे वैराग्य हुआ । मेघविलय लख वैभव त्यागा वन की ओर प्रयाणकिया । पंच महाव्रत धारे लौकातिक देवों का गान हुआ । जय जय पुष्पदत परमेश्वर अनुपम तप कल्याण हुआ ॥३॥ ॐ ही मगसिरशीर्ष शुक्लामतिपदादिने तपोमंगलप्राप्ताय पुष्पदंत जिनेन्द्राय आय नि। कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन तुमने पाया केवलज्ञान । चार घातिया, वेसठ कर्म प्रकृतियों का करके अवसान ।।