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जैन पूजाजलि अतर दृष्टि बदल कर अपनी हेय राग तद्रा को छोड ।
निज स्वरुप में जाग्रत हा जा त्वरित भाव निद्रा को छोड । । ॐ ह्री श्री ज्येष्ठकृष्ण चतुर्दश्या जन्ममगल प्राप्ताय श्रीशातिनाथ जिनेन्द्राय अयं नि मेघ विलय लख इमजग की अनित्यता का प्रभुभानलिया । लौकातिक लोगो ने आकर धन्य धन्य जयगान किया । कृष्ण चतुर्दशि ज्येष्ठ मास की अतुलित वैभवत्याग दिया । शातिनाथ ने मुनिव्रत धारा शुद्धातम अनुराग किया ।।३।। ॐ ह्री ज्येष्ठकृष्णचतुर्दश्या तपोमगल प्राप्ताय श्री शातिनाथ जिनेद्राय अयं नि पोष शुक्ल दशमी को चारो घातिकर्म चकचूर किया । पाया केवलज्ञान जगत के सारे सकट दर किये ।। समवशरण रचकर देवो ने किया ज्ञानकल्याण महान । शातिनाथ प्रभु की महिमा का गूजा जगमे जयजयगान ।।४।। ॐ श्री पौषशुक्लदशम्याकेवलज्ञान प्राप्ताय श्री शातिनाथजिनेन्द्राय अयं नि ज्येष्ठ कृष्ण की चतुर्दशी को प्राप्त किया मिद्धत्वमहान । कूट कुन्दप्रभु गिरि सम्मेदशिखर से पाया पद निर्वाण ।। सादिअनन्त सिद्ध पद को प्रगटाया प्रभु ने धरनिजध्यान । जयजय शातिनाथ जगदीश्वर अनुपम हुआमोक्षकल्याण ।।५।। ॐ ही ज्येष्ठ कृष्णा चतुर्दश्या मोक्षमगल प्राप्ताय श्रीशातिनाथ जिनेन्द्राय अयं नि
जयमाला शातिनाथ शिवनायक शाति विधायक शुचिमयशुद्धात्या । शुभ्र मूर्ति शरणागत वत्सल शीलस्वभावी शातात्मा ।।१।। नगर हस्तिनापुर के अधिपति विश्वसेन नृप के नन्दन । मा ऐरा के राज दुलारे सुर नर मुनि करते वन्दन।।२।। कामदेव बारहवे पचम चक्री तीन ज्ञान धारी । बचपन मे अणुव्रत धर योवन मे पाया वैभव भारी ।।३।। भरतक्षेत्र के षट खण्डो को जय कर हुए चक्रवर्ती । नव निधि चोदह रत्न प्राप्त कर शासक हुए न्यायवर्ती ।।४।।