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जैन पूजाजलि जन्म मरण करते करते तू ऊबा नही विभाव से ।
अब तो निज पुरुषार्थ जगाले मिलजा अरे स्वभाव से ।। हे प्रभु मैं भी निज आश्रय ले निजस्वरुप कोही ध्याऊँ। धर्मशक्ल ध्या अष्टकर्म क्षयकर निज सिद्धस्वपदपाऊँ ॥३७।। ॐ ही श्री धर्मनाथ जिनेनद्राय पूर्णायं नि स्वाहा ।
वज्र चिन्ह शोभित चरण भाव सहित उरधार । मन वच तन जो ध्यावते वे होते भवपार ।।
इत्याशीर्वाद जाप्तमन्त्र - ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेन्द्राय नम
श्री शांतिनाथ जिन पूजन शाति जिनेश्वर हे परमेश्वर परमशान्त मुद्रा अभिराम । पचम चक्री शान्ति सिन्धु सोलहवे तीर्थकर सुख धाम ।। निजानन्द मे लीन शाति नायक जग गुरु निश्चल निष्काम । श्री जिन दर्शन पूजन अर्चन वदन नित प्रति करूँ प्रणाम ।। ॐ ह्री श्री शातिनाथ जिनेंद्र अत्र अवतर-अवतर सवौषट् ॐ ह्री श्री शातिनाथ जिनेन्द्र अत्रतिष्ठ तिष्ठ ठ ठ । ॐ ह्री श्री अत्र मम सन्निहितो भव-भव वषट जल स्वभाव शीतल मलहारी आत्म स्वभाव शुद्ध निर्मल । जन्म मरण मिट जाये प्रभु जब जागे निजस्वभाव का बल ।। परम शातिसुखदाय शातिविधायक शातिनाथ भगवान । शाश्वत सुख को मुझेप्राप्ति हो श्री जिनवर दो यह वरदान।।१।। ॐ ह्री श्री शातिनाथ जिनेद्राय जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जल नि । शीतल चदन गुण सुगधमय निज स्वभाव अति ही शीतल । पर विभाव का ताप मिटाता निज स्वरुप का अतर्बल ।। परम ॥२।। ॐ ह्री श्री शातिनाथ जिनेन्द्राय ससारताप विनाशनाय चदन नि । भव अटवी से निकल न पाया पर पदार्थ मे अटका मन । यह ससार पार करने का निज स्वभाव ही है साधन ।। परम ।।३।। ॐ ह्री श्री शातिनाथ जिनेन्दाय अक्षयपद प्राप्ताय अक्षत नि । कोमल पुष्प मनोरम जिनमे राग आग की दाह प्रबल । निज स्वरूप की महाशक्ति से काम व्यथा होती निर्बल परम ।।४।।