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जैन पूजाजलि ज्ञान रहित वैराग्य नहीं है मोक्ष मार्ग में काम का ।
ज्ञान सहित वैराग्य भावही सम्यक पथ शिव घाम का । । चौथे पचम छठवे तक यह आर्त ध्यान हो जाता है । रौद्रध्यान चौथे पचम से आगे कभी न जाता है।।११।। धर्म ध्यान के चार भेद हैं आज्ञाविचय अपायविचय । तृतिय विपाकविचय कहलाता चौथा है सस्थानविषय ॥१२॥ जिन आज्ञा से वस्तु चितवन आज्ञाविचय ध्यान सुखमय । कर्मनाश के उपाय का ही चिंतन ध्यान अपायविचय ।।१३।। कर्म विपाक उदय उदीरणादिक चितवन विपाकविचय ।। तीन लोक के स्वरूप का चितवन ध्यान सस्थानविचय।।१४।। इनमे से सस्थानविचय के चार भेद पिडस्थ पदस्थ । तीजा है रूपस्थ ध्यान चौथा है रूपातीत प्रशस्त ।।१५।। है पिडस्थ निजात्म चितवन श्री अर्हत आकति का ध्यान । वर्ण मातृका मत्र ॐ आदिक मे सुस्थिति पदस्थ ध्यान।।१६।। श्री अरहत स्वरूप चितवन निज चिद्रूप ध्यान रूपस्थ । ध्यान त्रिकाली शुद्धात्मा का रूपातीत महान प्रशस्त ।।१७।। पाच धारणाए पिडस्थ ध्यान की ध्याते परम यती । पार्थिवी, आग्नेयी, श्वसना, वारूणी, तत्व रूपमती ॥१८॥ धर्मध्यान का फल सवर निर्जरा मोक्ष का हेतु महान । चौथे गुणस्थान से सप्तम तक होता है धर्म-ध्यान ।।१९।। अष्टम गुणस्थान से लेकर चौदहवे तक शुक्ल ध्यान । शुक्लध्यान का फल साक्षात शाश्वत सिद्धस्वपद भगवान ॥२०॥ ग्यारह अग पूर्व चौदह के ज्ञानी जो पूर्वज्ञ महान । वज्रवृषभनाराचसहनन चरम शरीरी को यह जान ।।२१।। शुक्लध्यान के चार भेद है इनकी महिमा अमित महान । इनके द्वारा ही होता है आठो कमों का अवसान ।।२२।। पृथक्त्व वितर्क विचार और एकत्व वितर्क अविचार पहान । सूक्ष्मक्रिया अप्रतिपाति अरु व्युपरत क्रिया निवर्ति प्रधान।।२३।।