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श्री अनन्तनाथ जिन पूजन
२२३ जायक तो केवल झाषक है तीन लोक से न्यारा है ।
अविनाशी आनंद बंद है पूर्ण ज्ञान सुखकारा है 11. पचसमिति व्यवहार समिति निश्चय से निज सम्यक पाणति । सत्वलीन जयगुप्ति सहित ज्ञानादिक थर्मों की संहति ॥१८॥ कालुष सज्ञा मोहराग द्वयादि अशुभ भावों को तज । परमागम का चिंतन करना मनोगुप्ति व्यवहार सहज ॥१९॥ पाप हेतु विकथाए तज करना असत्य की निवृत्ति सदा । वचन गुप्ति अन्तर वचनो अरु बहिर्वचन मे नहीं कदा ॥२०॥ बंधन छेदन मारण आकुचन व प्रसारण इत्यादिक । कायक्रियाओ से निवृत्ति है कायगुप्ति निज सुखदायिका॥२१॥ तेरह विधि चारित्रपाल जो करना कायोत्सर्ग स्वय । त्याग शुभाशुभ, ध्यानमयी निजभजता जो शुद्धात्मपरम ।।२२।। घाति कर्म से रहित परम केवलज्ञानादि गुणो से युत । हो जाते अरिहतदेव चौंतीस अतिशयो से भूषित ।।२३।। अष्टकर्म के बधन को कर नष्ट अष्टगुण पाता है । वह लोकाग्र शिखर पर स्थिर हो सिद्धस्वपद प्रगटाता है।।२४।। मै भी बन सपूर्ण सिद्ध निज पद पाऊँ ऐसा बल दो । हे प्रभु विमलनाथ जिनस्वामी पूजन का शिवमयफल हो ।॥२५॥ ॐ ह्री श्री विमलनाथ जिनेन्द्राय पूर्णायं नि स्वाहा ।
शूकर चिन्ह चरण मे शोभित विमल जिनेश्वर का पूजन । मन वच तन से जो करते हैं वे पाते है मुक्तिसदन ।।२६।।
इत्याशीर्वाद जाप्यमत्र - ॐ ही श्री विमलनाथ जिनेंद्राय नम ।
श्री अनन्तनाथ जिन पूजन जय जय जयति अनन्तनाथ प्रभु शुद्ध ज्ञानधारी भगवान् । परम पूज्य मंगलमय प्रभुवर गुण अनन्तधारी भगवान् ।। केवलज्ञान लक्ष्मी के पति भव भय दुखहारी भगवान् । पाम शुद्ध अव्यक्त अगोचर भव भव सुखकारी भगवान् ।।