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श्री विमलनाथ जिन पूजन निज निराकार से जुड़ जाओ साकार रुप का छोड ज्यान ।
आनद अतीन्द्रिय सागर में बहते जाओ ले भेद ज्ञान ।। ॐ ह्री श्री वासुपूज्य जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, मोक्षकल्याणप्राप्ताय पूर्णाऱ्या नि ।
महिष चिंह शोभित चरण, वासुपूज्य उर धार । मन वच तन जो पूजते वे होते भव पार।।
इत्याशीर्वाद जाप्यमत्र - ॐ ही श्री वासुपूज्य जिनेंद्राय नम ।
श्री विमलनाथ जिन पूजन जय जय विमलनाथ विमलेश्वरविमल ज्ञानधारी भगवान । छयालीसगुण सहित, दोषअष्टादश रहित वृहत विद्वान ।। विश्वदेव विश्वेश्वर स्वामी विगतदोष विक्रमी महान । मोक्षमार्ग के नेता प्रभुवर तुमने किया विश्व कल्याण ।। ॐ ही श्री विमलनाथ जिनेद अत्र अवतर-अवतर सौषट ॐ ह्री श्री विमलनाथ जिनेन्द्र अत्रतिष्ठ तिष्ट ठ ठ । ॐ ह्री श्री विमलनाथ जिनेन्द्र अत्र मम सनिहितो भव-भववषट विमलज्ञान जल की निर्मल पावनता अन्तर मे भरा। जन्ममरण की व्यथा नाशहित प्रभु सम्यक्त्व प्राप्तकरलू।। विमलनाथ को मन वच काया पूर्वक नमस्कार करलूँ । शुद्धआत्मा को प्रतीति कर यह ससार भार हरलूँ ॥१॥ ॐ ह्री श्री विमलनाथ जिनेन्द्राय जन्म जरामृत्यु विनाशनाय जल नि । विमलज्ञान का शीतल पावन चदन अन्तर मे भरलूँ । भव सताप हरने को प्रभु विनयत्व प्राप्त करलूँ ॥ विमल ।।२।। ॐ ह्री श्री विमलनाथ जिनेन्द्राय ससारतापविनानाय चदन नि । विमलज्ञान के अति उज्ज्वल अक्षत निज अन्तर मे भरले । निजअक्षय अखड पद पाने प्रभु सरलत्व प्राप्तकरलें ॥ विमल ॥३॥
ॐ ही श्री विमलनाथ अक्षयपद प्राप्तये अक्षत नि विमलज्ञान के परम शुद्ध पुष्यों को अन्तर में भरलूँ । कामदर्प को चूर करूँ प्रभु निष्कामत्व प्राप्त करलें ॥विमल ।।४।।