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जैन पूजाजलि निज का अभिनन्दन करते ही मिथ्यात्व मूल से हिलता है ।
निज प्रभु का वदन करते ही आनद अतीन्द्रिय मिलता है । । अष्ट वर्ष की अल्प आयु मे तुमने अणुव्रत धार लिया । यौवन वय मे ब्रह्मचर्य आजीवन अगीकार किया ।।३।। पच मुष्टि कचलोच किया सब वस्त्राभूषण त्याग दिये । विमल भावना द्वादश भाई पच महाव्रत ग्रहण किये।।४।। स्वय बुद्ध हो नम सिद्ध कह पावन सयम अपनाया । पति, श्रुति, अवधि जन्म से था अब ज्ञान मन पर्यय पाया ।।५।। एक वर्ष छास्थ मौन रह आत्म साधना की तुमने । उग्र तपस्या के द्वारा ही कर्म निर्जरा की तुमने ।।६।। श्रेणीक्षपक चढे तुम स्वामी मोहनीय का नाश किया । पूर्ण अनन्त चतुष्टय पाया पद अरहत महान लिया ।।७।। विचरण करके देश देश मे मोक्ष मार्ग उपदेश दिया । जो स्वभाव का साधन साधे, सिद्ध बने, सदेश दिया ।।८।। प्रभु के छयासठ गणधर जिनमे प्रमुख श्रीमदिर ऋषिवर । मुख्य आर्यिका वरसेना थी नृपति स्वयभू श्रोतावर ।।९।। प्रायश्चित व्युत्सर्ग, विनय, वैरुयावृत्त स्वाध्याय अरुध्यान । अन्तरग तप छह प्रकार का तुमने बतलाया भगवान ।।१०।। कहा वाह्य तप छ प्रकार उनोदर कायक्लेश अनशन । रस परित्यागसुव्रत परिसख्या, विविक्त शय्यासन पावन ।।११।। ये द्वादश तप जिन मुनियो को पालन करना बतलाया । अणुव्रत शिक्षाप्रत गुणवत द्वादशवत श्रावक का गाया ।।१२।। चम्पापुर मे हुए पचकल्याण आपके मगलमय । गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, मोक्ष, कल्याण भव्यजन को सुखमया।१३।। परमपूज्य चम्पापुर की पावन भू को शत्-शत् वन्दन।। वर्तमान चौबीसी के द्वादशम् जिनेश्वर नित्य नमन ।।१४।। मैं अनादि से दुखी, मुझे भी निज बल दो भववास हरूँ। निज स्वरूप का अवलम्बन ले अष्टकर्म अरि नाश करूँ।।