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श्री वासुपूज्यजिन पूजन क्षण क्षण क्यों भाव मरण करता मिथ्यात्व मोह के चक्कर में ।
दिनरात भयकर दुख पाता फिर भी रहता है पर घर में । । गिरि सुमेरु पर पाण्डुक वन मे हुआ जन्म कल्याणमहान । वासुपूज्य का क्षीरोदधि से हुआ दिव्य अभिषेक प्रधान ।।२।। ॐ ही श्री फाल्गुन कृष्णचतुर्दश्या जन्ममलगप्राप्ताय श्रीवासुपूज्य जिनेंद्राय अर्घ्य नि स्वाहा। फागुन कृष्ण चतुर्दशी को वन की ओर प्रयाण किया । लौकातिक देवर्षि सुरो ने आकर तप कल्याण किया । । तब नम सिद्धेभ्य कहकर प्रभु ने इच्छाओ का दमन किया वासुपूज्य ने ध्यान लीन हो इच्छाओ का दमन किया ॥३॥ ॐ ह्री श्री फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्या तपोमगल प्राप्ताय श्री वासुपूज्य जिनेद्राय अर्घ्य नि। माघ शुक्ल की दोज मनोरम वासुपूज्य को ज्ञान हुआ । समवशरण मे खिरी दिव्यध्वनि जीवो का कल्याण हुआ । । नाश किये घन घाति कर्म सव केवलज्ञान प्रकाश हुआ । भव्यजनो के हृदय कमल का प्रभु से पूर्ण विकाश हुआ ।।४।। ॐ ह्री श्री माघशुक्लद्वितीयाया केवलज्ञान प्राप्ताय श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय अयं नि । अतिम शुक्ल ध्यानधर प्रभु ने कर्म अघाति कि एचकचूर । मुक्ति वधू के क्त हो गये योग मात्र कर निज से दर ।। भादव शुक्ला चतुर्दशी चम्पापुर से निर्वाण हुआ । मोक्ष लक्ष्मी वासुपूज्य ने पाई जय जय गान हुआ ।।५।। ॐ ह्री श्रीभाद्रपदशुक्लचतुर्दश्या मोक्षमगलप्राप्ताय श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अयं नि स्वाहा ।
जयमाला वासुपूज्य विद्या निधि विध्न विनाशक वागीश्वर विश्वेश । विश्वविजेता विश्वज्योति विज्ञानी विश्वदेव विविधेश।।१।। चम्पापुर के महाराज वसुपूज्य पिता विजया माता । तुमको पाकर धन्य हुए हे वासुपूज्य मगल दाता।।२।।