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जैन पूजाजलि आत्म भूत लक्षण सम्यक दर्शन का स्वपर भेद विज्ञान ।
समकित होते ही होती है निर्विकल्प अनुभूति महान ।। ॐ ह्री श्री विमलनाथ जिनेंद्राय कामवाण विध्वरानाय पुष्प नि । विमलज्ञान नैवेद्य सुहावन शुचिमय अन्तर मे भरलूँ । अब अनादि का क्षुधारोगहर प्रभुविमलत्व प्राप्त करवू ।।विमल ।।५।। ॐ ह्री श्री विमलनाथ क्षुधागेग विनाशनाय नैवेद्य नि । विमलज्ञान का जगमग दीप जला अन्तरतम को हरलें । मिथ्यातम का तिमिर नाशकर सर्वज्ञत्व प्राप्त करलूँ । विमल ।।६।।
ॐ ह्रीं श्री विमलनाथ जिनेद्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीप नि । विमलज्ञान की चिन्मय धूप सुगन्धित अन्तर मे भरलें । कर्मशत्रु की सर्व शक्ति हर प्रभु अमरत्वप्राप्त करनू ।। विमल ॥७॥ ॐ ह्री श्री विमलनाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्म विध्वसनाय धूप नि । विमलजान फल महामोक्ष पद दाना अन्तर मे भरलूँ । शुद्ध बुद्ध अविरुद्ध स्वपद पा पूर्णशिवत्य प्राप्तकरलूँ विमल ।।८।। ॐ ह्री श्री विमलनाथ जिनेद्राय महा मोक्ष फल प्राप्ताय फल नि । विमलज्ञान का निज परिणतिमय पद अनर्घ उरमे भरलूँ । अचल अतुलअविनाशी पद पा सर्व प्रभुत्व प्राप्तकरलू ।। विमल ।।९।। ॐ ह्री श्री विमलनाथ जिनेन्द्राय अनर्धपद प्राप्ताय अयं नि ।
श्री पंचकल्याणक पुरी कम्पिला धन्य हो गई सहस्त्रार तज तुम आए । ज्येष्ठ कृष्ण दशमी को माता जयदेवी ने सुख पाए । षटनवमास रत्न वर्षा के दृश्य मनोरम दर्शाये । दिक्कुमारियो ने सेवाकर विमलनाथे मगल गाए ।।१।। ॐ ही ज्येष्ठ कृष्ण दशम्या गर्भ मगल प्राप्ताय श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय अयं नि । कापिल्य नृप श्री कृतवर्मा के शुभ गृह मे जन्म हुआ । राजभवन मे सुरपति का अनुपम नाटक नृत्य हुआ । माघ मास की शुक्ल चतुर्थी गिरि सुमेरु अभिषेक हुआ । जय जय विमलनाथ जन्मोत्सव परमहर्ष अतिरेक हुआ ॥२॥