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श्री श्रेयासनाथ जिनपूजन उषा काल में प्रात समय निज का चितन करलो चेतन ।
घडी दो घडी जितना भी हो तत्व मनन करलो चेतन । । नग्न दिगम्बर मुद्रा धर तप सयम से अनुराग जगा । श्रेयास तप कल्याणक देख लगा वैराग्य सगा ॥३॥ ॐ ह्री फाल्गुनकृष्ण एकादश्या तपोमगल प्राप्ताय श्रेयासनाथजिनेंद्राय अयं नि । माघ कृष्ण की अम्मावस को पूर्ण ज्ञान का सूर्य उगा । तीन लोक सर्व दर्शाता केवलज्ञान प्रकाश जगा । । दिव्यध्वनि से समवशरण मे जीवो का उपकार हुआ । जयश्रेयास नाथ तीर्थकर दशदिशि जय जयकार हुआ ॥४॥ ॐ ह्री माघकृष्णाअमावस्या केवलज्ञान प्राप्ताय श्रेयासनाधजिनेन्द्राय अयं नि । शुक्ल पूर्णिमा सावन की मन भावन अमर पवित्र हुई । मकुलकूट श्री सम्मेदाचल की शिखर पवित्र हई ।। तुमसे प्रभु निर्वाण लक्ष्मी परिणय करके धन्य हुई। प्रभ श्रेयास मोक्ष मगल से पावन धरा अनन्य हुई ।।५।। ॐ ही श्रावण शुक्ल पूर्णिमाया मोक्षमगल प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्ताय अयं नि स्वाहा।
जयमाला एकादशम तीर्थकर श्रेयासनाथ को करूं प्रणाम । श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओ का उपदेश दिया अभिराम ॥१।। गणधरदेव सतत्तर प्रभु के प्रमुख धर्मस्वामी गणधर । मुख्य आर्यिका श्री चरणा श्रोता थे त्रिपृष्ठ नृपवर ।।२।। हे प्रभु मै भी ग्यारह प्रतिमाए था ऐसा बल दो । मोक्षमार्ग पर चलूँ निरन्तर निज स्वभाव का सबल दो ॥३।। दहे भोग ससार विरत हो अष्ट मूलगुण का पालन । पहिली दर्शन प्रतिमा है धारण करना सम्यकदर्शन ।।४।। धाउँ अणुव्रत पाँच तीन गुणव्रत धाउँ शिक्षाव्रत चार । श्रावक के बारह व्रत धारण करना व्रत प्रतिमा है सार ।।५।।