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श्री श्रेयासनाथ जिनपूजन जब तक नहीं स्वभाव भाव है तब तक है संयोगी भाव । जब संयोगी भाव त्याग देगा तो होगा शुद्ध स्वभाव । ।
श्री श्रेयांसनाथ जिनपूजन श्रेष्ठ श्रेय सभव श्रुतात्मा श्रेष्ठसुमतिदाता श्रेयान । श्रेयनाथ श्रेयस श्रुतिसागर श्रीमत श्रीपति श्रीमान ।। विपत्ति विदारक विपुलप्रभामय वीतरागविज्ञान निधान । विश्वसूर्य विख्यात कीर्ति विभु जय श्रेयासनाथ भगवान ।। मैं श्रेयासनाथ चरणो की भाव सहित करता पूजन । मन वच काय त्रियोग जीतकर हे प्रभु पाऊ मोक्षसदन ।।
ॐ ही श्री श्रेयासनाथ जिनेन्द्र अत्र अवतर-अवतर सवौषट्, ॐ ही श्री श्रेयासनाथ जिनेन्द्र अन तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ, ॐ ह्री श्री श्रेयासनाथ जिनेन्द्र अव मम सन्निहितो भव भव वषट। उत्तम निर्मल सवरमय निर्जरानीर प्रभु लाऊँ । क्षायिक ज्ञान प्राप्त करने को अन्तरज्योति जगाऊँ ।। श्री श्रेयासनाथ चरणो मे सविनय शीश झकाऊँ। क्षायिक लब्धि प्राप्त करने को निज का ध्यानलगाऊँ ॥१॥ ॐ ही श्री श्रेयासनाथ जिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जल नि । पावन चदन सवरमय निर्जरा भाव के लाऊँ । क्षायिक दर्शन पाने को प्रभु अतर ज्योति जगाऊँ ।।श्री श्रेयास ॥२॥ ॐ ही श्री श्रेयासनाथ जिनेन्द्राय समारताप विनाशनाय चदन नि । उज्ज्वल अक्षत सवरमय निर्जराभाव के लाऊँ। क्षायिकदान प्राप्त करने को अतर ज्योति जगाऊँ ।।श्री श्रेयास ॥३॥ ॐ ही श्री श्रेयासनाथ जिनेन्द्राय अक्षयपद प्राप्ताय अक्षत नि । पुष्प सुवासित सवरमय निर्जरा भाव के लाऊँ। क्षायिक लाभ प्राप्त करने को अतरज्योति जगाऊँ ।।श्री श्रेयास ॥४॥ ॐ ही श्री श्रेयासनाथ जिनेन्द्राय कामबाण विध्वसनाय पुष्प नि । शुद्ध विमल चरु सवरमय निर्जरा भाव के लाऊँ। क्षायिक भोग प्राप्तकरने को अतरज्योति जगाऊँ।।श्री श्रेयास ।।५।। ॐ ह्री श्री श्रेयासनाथ जिनेन्द्राय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्य नि ।