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जैन पूजाँजलि तू अनत धर्मों का पिंड अखडपूर्ण परमातम है ।
स्वयं सिद्ध भगवान आत्मा सदा शूद्ध सिद्धातम है । । सात प्रकार शुद्धता पूर्वक छह प्रकार का सामायिक । तीन काल सामायिक प्रतिदिन तीजी प्रतिमा सामायिक।।६।। पर्व अष्टमी अरु चतुर्दशी को प्रोषध उपवास कर। धर्म ध्यान में समय बितावे प्रोषधप्रतिमा ह्रदय घर।।७।। दष्टि जीव रक्षा की हो जिव्हा की लोलुपता न हो । हरित वनस्पति जब अचित्तले, सचित्तत्याग शुभप्रतिमा हो ॥८॥ खाद्य, स्वाद अर लेय पेय चारो आहार रात्रिमे त्याग । कृत कारित अनुमोदन से हो यह प्रतिमा निशिभोजनत्याग ।।९।। सादा रहन सहन भोजन हो पूर्ण शील भय राग रहित । सप्तम ब्रहाचर्य प्रतिमा हो नव प्रकार की वाड सहित ॥१०॥ घर व्यापार आदि सबन्धी सब प्रकार आरम्भ तजे । आत्म शुद्धि हो दयाभाव हो प्रतिमा आरम्भत्याग भजे ।।११।। आकुलता का कारण गृह सपति परिग्रह सब त्यागे । धार “परिग्रह त्याग" सुप्रतिमा हो विरक्त निजमे जागे ।।१२।। गृह व्यापारिक किसी कार्य की अनुमति कभी नहीद हम । अनुमति त्याग सुदशमी प्रतिमा उदासीन हो जगसे हम ॥१३॥ ग्यारहवी उद्दिष्ट त्याग प्रतिमा के है दो भेद प्रमुख । खड वस्त्र सह क्षुल्लक होते एक लगोटी से ऐलक ।।१४।। उद्दिष्ठी भोजन के त्यागी विधि पूर्वक भोजन करते । एक कमडुल एक पिछी रख वृत्ति गोचरी को धरते ।।१५।। इनके पालन करने वाले सच्चे श्रावक श्रेष्ठ व्रती ।। एक देशव्रत के धारी ये पचम गुणस्थान वर्ती ॥१६।। जब इन ग्यारह प्रतिमाओ का पालन होता निरतिचार । पूर्ण सकल चारित्र ग्रहण कर करते मुनिव्रत अगीकार ।।१७।। दृढता आए श्रेणी चढकर शुक्ल ध्यानमय ध्यान गहे । त्रेसठ प्रकृति विनाश कर्म की अनुपम केवलज्ञान लहे ।।१८।।