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श्री शीतलनाथ जिनपूजन परम शुद्ध निश्चय नय का जो विषय भूत है शुदातम ।
परम भाव ग्राही द्रव्यार्थिक नयको विषय वस्तु आतम । । गिरिसुमेरु पर पांडुकवन मे क्षीरोदधि से नव्हनकिया । एक सहस्त्र अष्ट कलशों से हर्षित हो अभिषेक किया ॥२॥ ॐ ही माघकृष्ण द्वादश्या जन्ममगल प्राप्ताय श्री शीतलनाथ जिनेन्द्राय अयं नि । शरद मेघ परिवर्तन लख कर उर छाया वैराग्य महान । लौकातिक देवो ने आकर किया आपका तप कल्याण ।। सकल परिगृह त्याग तपस्या करने वन को किया प्रयाँण । माघ कृष्ण द्वादशी सहेतुक वन मे गूजा जय जय गान ॥३॥ ॐ ही माधकृष्ण द्वादश्या तप कल्याणक प्राप्ताय श्री शीतलनाथ जिनेन्द्राय अयं नि स्वाहा। पौष कृष्ण की चतुदर्शी को पाया स्वामी केवलज्ञान । समवशरण की रचना कर देवो ने गाये मगल गान ।। सकल विश्व को वस्तु तत्त्व उपदेश आपने दिया महान । भद्दिलपुर मे गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान हुए चारो कल्याण ।।४।। ॐ ही पौषकृष्णचतुर्दश्या ज्ञानकल्याणक प्राप्ताय श्री शीतलनाथजिनेन्द्राय अयं नि । आश्विन शुक्ल अष्टमी को हर अष्ट कर्म पायानिर्वाण । विद्युत कूट श्री सम्मेदशिखर पर हुआ मोक्ष कल्याण ।। शेष प्रकृति पच्चासी हरकर कर्म अघाति अभाव किया । निज स्वभाव के साधन द्वारामोक्ष स्वरुप स्वभावलिया ।।५।। ॐ ही आश्विन शुक्लअष्टम्या मोक्ष कल्याण प्राप्ताय श्री शीतलनाथ जिनेन्द्राय अयं नि ।
जयमाला जय जय शीतलनाथ शीलमय शील पुज शीतल सागर । शुद्ध रूप जिन शुचिमय शीतलशील निकेतन गुण आगर ।।१।। दशम तीर्थंकर हे जिनवर परम पूज्य शीतलस्वामी । तुम समान मै भी बन जाऊ विनय सुनो त्रिभुवन नामी ।।२।।