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श्री शीतलनाथ जिनपूजन सिद्ध दशा को चलो साधने सब सिखों को वदन कर ।
सम्यक दर्शन की महिमा से आत्म तत्व का दर्शनकर । । निज कल्याण भावना से प्रभु आज आपका शरण लिया । बिना आपकी शरण अनतान्त भवो मे भ्रमण किया ॥२२॥ निजस्वरूप की ओर निहारूँ शुभ अरू अशुभ विकार तर्ने । पद पदार्थ से मैं ममत्व तज परम शुद्ध चिद्रूप भजे ॥२३॥ ॐ ही पुष्पदत जिनेन्द्राय पूर्णाय नि स्वाहा ।
मगर चिन्ह शोभित चरण पुष्पदत उरधार । मन वचतन जो पूजते वे होते भवपार।।
इत्याशीर्वाद जाप्यपत्र- ॐ ह्री श्री पुष्पदत जिनेन्द्राय नम ।
__ श्री शीतलनाथ जिनपूजन जय प्रभु शीतलनाथ शील के सागर शील सिधु शीलेश । कर्मजाल के शीतलकर्ता केवलज्ञानी महा महेश । ।
कालिक ज्ञायक स्वभाव ध्रुव के आश्रय से हुए जिनेश । मुझको भी निज समशीतल करदो हे विनय यहीपरमेश ।। ॐ ही श्री शीतलनाथ जिनेन्द्र अत्र अवतर-अवतर सवौषट, ॐ ह्री श्री शीतलनाथ जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ ॐ ही श्री शीतलनाथ जिनेन्द्र अत्र मम् सन्निहितो भव-भव वषट्। निर्मल उज्ज्वल जलधार चरणो मे सोहे । यह जन्म रोग मिट जाय निज मे मन मोहे । । हे शीतलनाथ जिनेश शीतलता धारी । हे शील सिन्धु शीलेश सब सकट हारी ॥१॥ ॐ ही श्री शीतलनाथ जिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जल नि । चन्दन सी सरस सुगन्ध मुझमे भी आये । भव ताप दूर हो जाय शीतलता छाये हे शीतल नाथ ॥२।। ॐ ही श्री शीतलनाथ जिनेन्द्राय ससारताप विनाशनाय चंदन नि । निज अक्षय पद का भान करने आया हूँ। हर्षित हो शुभ अखण्ड तन्दुल लाया हूँ ॥ हे शीतल नाथ ॥३॥