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जैन पूजांजलि क्षमा सत्य संतोष सरलता मृदुता लघुता नम्रता ।
अम्हचर्य तप गुप्ति त्याग समता उज्जवलता उच्चता । । परम भाव अक्षत के द्वारा अक्षय पद को प्राप्त करूँ। मोह क्षोभ से रहित बनूं मैं सम्यकचारित प्राप्त करूँ। पिंच ॥३॥ ॐ ह्रीं श्री अर्हत सिद्ध आचायोपाध्याय सर्व साधु, जिनवाणी, जिनमदिर जिनप्रतिमा, जिनधर्म, नवदेवेभ्यो अक्षयपद प्राप्ताय अक्षत नि । परम भाव पुष्पों से दुर्धर काम भाव को नाश करूँ। तप सयम की महाशक्ति से निर्मल आत्म प्रकाश करूँ पिच ॥४॥ ॐ ह्रीं श्री अर्हतसिद्ध आचार्योपाध्याय सर्वसाधु, जिनवाणी, जिनमंदिर जिनप्रतिमा, जिनधर्म नवदेवेभ्यो कामवाण विध्वसनायपुष्पं नि। परम भाव नैवेद्य प्राप्तकर क्षुधा व्याधि का ह्रास करूँ। पचाचार आचरण करके परम तृप्त शिववास करूँ पिच. ॥५॥ ॐ ह्रीं श्री अर्हतसिद्ध आचायोपाध्याय, सर्वसाधु, जिनवाणी, जिनमंदिर, जिनप्रतिमा जिनधर्म नवदेवेभ्योक्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्य नि परम भाव मय दिव्य ज्योति से पूर्ण मोह का नाश करूँ। पाप पुण्य आश्रव विनाशकर केवलज्ञान प्रकाश करूँ। पिच ॥६॥ ॐ ह्री श्री अर्हतसिद्ध आचार्योपाध्याय सर्वसाधु, जिनवाणी, जिन मंदिर जिनप्रतिमा, जिनधर्म नवदेवेभ्यो मोहान्धकार विनाशनाय दीप नि । परम भाव मय शुक्ल ध्यान से अष्ट कर्म का नाश करूँ। नित्य निरन्जन शिव पद पाऊ सिद्धस्वरुप विकास करूँ पिच ।।७।। ॐ ह्री श्री अहंतसिद्ध आचार्योपाध्याय, सर्वसाधु, जिनवाणी, जिनमन्दिर जिनप्रतिमा, जिनधर्म नवदेवेभ्यो अष्टकर्म दहनाय धूप नि । परम भाव सपत्ति प्राप्त कर मोक्ष भवन मे वास करूँ। रत्नत्रय मुक्तिशिला पर सादि अनत निवास करूँ।। पच ॥८॥ ॐ ह्री श्री अर्हतसिद्ध आचार्योपाध्याय, सर्वसाधु, जिनवाणी, जिनमदिर जिनप्रतिमा, जिनधर्म नवदेवेभ्यो महा मोक्षफल प्राप्ताय फलं नि । परम भाव के अर्घ चढ़ाऊं उर अनर्घ पद व्याप्त करूँ। भेद ज्ञान रवि ह्रदय जगाकर शाश्वत जीवन प्राप्त करूँ। पंच ।।९।। ॐ ह्रीं श्री आहेत सिद्धआचार्योपाध्याय सर्वसाधु, जिनवाणी, जिनमंदिर जिनप्रतिमा, जिनधर्मनवदेवेभ्यो अनर्ष पद प्राप्ताय अयं नि ।