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श्री सुमतिनाव लिनपूजन सीना राय को दुखमय समक्षा मंदस को सुखमय जाला । ......पाप पुण्य दोनों बंधन बोवराम का कमान ने माना ।। चैत्र शुक्ल एकादशी को प्रभु भारत भू पर आए । नृपति मेघ के आंगन में देवी ने मंगल माए ।। ऐरावत पर सुरपति तुमको गोदी में ले हाए । जय जय सुमतिनाथ जन्मोत्सव पर जग ने बहुसुख पाए।।२।। ॐ हीं चैत्रशुक्लएकादश्या जन्मकल्याण प्राप्ताय श्री सुमतिनाथ जिनेंद्राय अयं नि. शुभ बैशाख शुक्ल नवमी को जगा हृदय वैराग्य महान । लौकातिक ब्रम्हर्षि सुरो ने किया स्वर्ग से आ गुणगान ।। दीक्षित हुए सहेतुक वन मे तरु प्रियंगु के नीचे आन । जय जय सुमतिनाथ तीर्थकर हुआ आपका तप कल्याण ॥३॥ ॐ ही बैशाखशुक्लनवम्या तपकल्याण प्राप्ताय श्री सुमतिनाथ जिनेंद्राय अयं नि । बीसवर्ष छदमस्थ रहे प्रभु धारा प्रतिमा योग प्रधान । चैत सुदी ग्यारस को पाया शुक्ल ध्यान घर केवलज्ञान | समवशरण की अनुपम रचना हुई हुआ उपदेश महान । जय जय समतिनाथ तीर्थकर अद्भुत हुआ ज्ञानकल्याण ।।४।। ॐ ह्री चैत्रसुदीएकादश्या ज्ञान कल्याण प्राप्ताय श्री सुमतिनाथ जिनेन्द्राय अयं नि । चैत्र शुक्ल एकादशी को अष्ट कर्म का कर अवसान । अविचल कूट शिखर सम्मेदाचल से पाया पद निर्वाण ॥ मुक्ति धरा तक गूज उठे देवो के सुन्दर मजुल गान । जय जय सुपतिनाथ परमेश्वर अनुपम हुआ मोक्षकल्याण ।।५।। ॐ ही चैत्रशुक्लएकादश्या मोक्ष कल्याण प्राप्ताय श्री सुमतिनायजिनेंद्राय अयं नि।
जयमाला सुमतिनाथ प्रभु मुझे सुमति दो उर में निर्मल भाव जगे। धर्म भाव से ही मेरी नैया भव सागर पार लगे ॥१॥