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- श्री चन्द्रप्रय बिनपूजन रागद्वेष कमों का रस है यह तो मेरा नहीं स्वरुष । शान मात्र शुद्धोपयोग ही एक मात्र है मेरा रूप । । श्री सुपार्श्व के युगल पद भाव सहित उरधार । मन वच तन जो पूजते वे होते भवपार ।।
इत्याशीर्वाद जाप्यमंत्र-ॐ ह्रीं श्री सुपाश्र्वनाथ जिनेन्द्राय नमः ।
श्री चन्द्रप्रभ जिनपूजन महासेन नृपनंद चद्र प्रभ चंद्रनाथ जिनवर स्वामी । मात लक्षमणा के प्रियनन्दन जगउद्धारक प्रभु नामी ।। निज आत्मानुभूति से पाई मोक्ष लक्ष्मी सुखधामी । वीतराग सर्वज्ञ हितैषी करूँगामय शिव पुरगामी ।। ॐ ह्रीं श्री चंद्रप्रभ जिनेंद्र अन अवतर अवतर सवाषद, ॐ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभ जिनेंद्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ, ॐ ही श्री चद्रप्रभ जिनेंद्र अत्रमम् सनिहितो भव भव वषट् । तन की प्यास बुझाने वाला यह निर्मल जल लाया हूँ। आत्मज्ञान की प्यास बुझाने प्रभु चरणो मे आया हूँ।। चद्र जिनेश्वर चद्र नाथ चन्द्रेश्वर चन्दा प्रभु स्वामी । राग द्वेष परिणति के नाशक मगलमय अन्तर्यामी ॥१॥ ॐ ह्री श्री चद्रप्रभ जिनेंद्राय जन्मजरामृत्यु विनाशनाय चंदन नि । तन का ताप मिटाने वाला शीतल चदन लाया हूँ। राग आग की दाह मिटाने प्रभु चरणो मे आया हूँचन्द्र. ।।२।। ॐ ह्री श्री चद्रप्रभ जिनेंद्राय ससारताप विनाशनाय चदन नि । परम शुद्ध अक्षय पद पाने उज्ज्वल अक्षत लाया हूँ। भव समुद्र से पार उतरने प्रभु चरणो मे आया है । चन्द्र. ॥३॥ ॐ ही श्री चद्रप्रभ जिनेंद्राय अक्षयपद प्राप्ताय अक्षत नि । कामबाण से घायल होकर पुष्प मनोहर लाया हूँ। महाशील शीलेश्वर बनने प्रभु चरणो में आया हूँ। चिन्द्र. ॥४॥ *हीं चंद्रप्रभ जिनेन्द्रायकामबाण विध्वसनाय पुष्पं नि. ।