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समरांगण में आए म माव पर यह बरपाया ।। पौष कृष्ण एकादशी की राज्य आदि सब छोड़ दिया । ' यह संसार असार जालकर सप से नाता जोड़ दिया ।। पंच महावत धारण करके वस्त्राभूषण स्वाय दिवे । तप कल्याण मनाया देवों में जिनवर अनुराग लिए ॥३॥ * ही पौषकृष्ण एकादरको तप कल्याण प्राप्तायी चन्द्रप्रय जिनेनाम अनि । तीन मास छस्थ रहे प्रभु उन तपस्या में हो लीन । प्रतिमा योग धार चंदा प्रभु शुक्ल ध्यान में हुए स्वलीन । ध्यान अग्नि से लैसठ कर्म प्रकृतियों का बल नाशकिया । फाल्गुन कृष्ण सप्तमी के दिन केवलज्ञान प्रकाश लिया ॥४॥ *ही श्री फाल्गुन कृष्णसप्तम्या केवल प्राप्ताय श्री चन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अष्य नि । शेष प्रकति पिच्चासी का भी अन्त समय अवसान किया । फाल्गुन शुक्ल सप्तमी के दिन प्रभु ने पद निर्वाणलिया ।। ललितकूट सम्मेदशिखर से चन्दा प्रभु जिन मुक्त हुए ।
र्च गमन कर सिद्ध लोक मे मुक्ति रमा से युक्त हुए।॥५॥ ॐ ही श्री फाल्गुनशुक्स सप्तम्यां मोक्षमगलप्राप्ताय श्री चंद्रप्रभाजिन्द्राय अवं नि स्वाहा।
जयमाला चन्द्र विन्ह चित्रित वरण चन्द्रनाथ चित धार ।
चिन्तामणि श्री चन्द्रप्रभ चन्द्रामस दातार ॥१॥ चन्द्रपुरी के न्यायवान श्री महासेन राजा बलवान ।। देवि लक्ष्मण रानी उर से जन्मे चन्द्रनाथ भगवान ॥२॥ इन्द्र शची सुर किन्नर यक्ष सपी ने गाये मंगलगान । तीर्थकर का जन्म जानकर धरती में भी आए प्राण ॥३॥ बड़े हुए प्रभु राजकाज में न्याय पूर्वक लीन हुए। जग के भौतिक भोग भोगते सिंहासन आसीन हुए ॥४॥