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श्री जिनपूजन सदेस मेयम का भारी कालाता है देशब्ती ।
प्रदेश संयम का धारी कहलाता है मालती ।। मीभाषचदिने मंगलकाताय प्रोफामाजनेत्राय अम्ब नि. । कार्तिक कृष्ण प्रयोदशी को कौशाम्बी में जन्म लिया । गरि सुमेरु पर इदिक ने खरोदय ने नहन किया ।। राजा धरणराज आंगन में सुर सुरपति ने इत्य किया । जय जय पानाथ तीर्थकर जग ने जय जय नाद किया ॥३॥ * हो श्री कार्तिककष्णत्रयोदश्या जन्ममंगलप्रापायी पदमप्रम जिनेंद्राय अभ्य नि। कार्तिक कृष्ण प्रयोदशी को तुमको जाति स्मरण हुआ । जागा उर वैराग्य तभी लौकान्तिक सुर आगमन हुआ ।। तरु प्रियगु मनहर वन मे दीक्षाधारी तप ग्रहण हुआ । जय जय पानाथ तीर्थकर अनुपम नप कल्याण हुआ ।।४।। ॐ ही श्री कार्तिककृष्णप्रयोदश्या तपोमगलमाप्ताय श्री पदमप्रभ जिनेन्द्राय अष्य नि । चैत्र शुक्ल पुर्णिमा मनोहर कर्म घाति अवसान किया । कौशाम्बी वन शुक्ल ध्यान धर निर्मल केवलज्ञान लिया ।। समवशरण में बदश सभा जुडी अनुपम उपदेश दिया । जय जय पानाथ तीर्थकर जग को शिव सन्देश दिया ।।५।। ॐ ही श्रीचैत्रशुक्लपूर्णिमाया ज्ञानमगल प्राप्ताय श्री पदमप्रम जिनेन्द्राय अयं नि । मोहन कूट शिखर सम्मेदाचल से योग विनाश किया । फाल्गुन कृष्ण चतुर्थी को प्रभु भवबन्धन का नाश किया । अष्टकर्म हर ऊर्ध्व गमन कर सिद्ध लोक आवास लिया । जयति पाप्रभु जिनतीर्थेश्वर शाश्वत आत्मविकाश किया ॥६॥
ही श्रीफल्गुनकृष्णचतुथ्यो मोजमयलगातार पीपदममयजिनेन्द्राय अष्य नि!
परम श्रेष्ठ पावन परमेष्ठी पुरुषोत्तम प्रभु परमानन्द । परमध्यानरत परमामय प्रशान्तास्मा मानन्द Int