________________
श्री सुमतिनाथ जिनपूजन
१८७ अब प्रभु चरण कोड कित जाऊ ।
ऐसी निर्मल बुद्धि प्रभो दो शुखातम को ध्याऊ ।। नाथ आपकी पूजन करके मुझको अति आनन्द हुआ । जन्म जन्म के पातक नाशे दूर शोक दुख बंद हुआ R५॥ ॐ ह्रीं श्री अभिनंदन जिनेद्राय अनर्षपद प्राप्ताय पूर्णाय नि
कपि लक्षण प्रमु पद निरख अभिनन्दन चित् धार । मन वच तन जो पूजते हो जाते भव पार ।।
इत्याशीर्वाद जाप्यमत्र-ॐ ह्रीं श्री अभिनदन जिनेंद्राय नमः
श्री सुमतिनाथ जिनपूजन जय जय सुमतिनाथ पचय तीर्थकर प्रभु मगलदाता । कुमतिविनाशक समतिप्रकाशक परमशात जगविख्यात ।। सहज स्वरूपी सर्वशरण सर्वार्थ सिद्ध सकट हर्ता । सत्य तीर्थंकर सर्वगुणाश्रित सूर्य कोटि प्रभु सुख कर्ता ।। मैं अनादि से दुखिया व्याकुल शरण आपकी आया हूँ । सत्य मार्ग सत्यार्थ प्राप्ति हित भाव सुमन प्रभु लाया हूँ।। ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथ जिनेंद्र अत्र अवतर अवतरसवौषट्, ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथ जिनेंद्र अत्रतिष्ठ तिष्ठ ठ ठ, ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथ जिनेंद्र अत्रमा सनिहितों भव भव वषट्। जल की निर्मलता नाथ मुझको भाई है। शुद्धातम को महिमा नहीं कर पाई है ।। हे सुमतिनाथ जिनदेव सुमति प्रदान करो । ससार भ्रमण का मूल भ्रम अज्ञान हरो ॥१॥ ॐ ह्री श्री सुमतिनाथ जिनेंद्राय जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जलं नि चदन की शीतलता सदा ही भाई है। शुद्धातम की महिमा नहीं कर पाई है । हे सुमति. ॥२॥ ॐ ही श्री सुमतिनाथ जिनेंद्राय संसारताप विनाशनाय चंदन नि । तंदुल की उज्ज्वलता हृदय को भाई है। शुद्धातम की महिमा नहीं कर पाई है ।हे सुमति. ॥३॥