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श्री नवदेव पूजन सहज र निष्काम भाव से भव समुद्र को तरोतसे ।
आत्मोज्ज्वलता में बाधक शुभ अशुभ राग को हरोहरो ।। अपने स्वरूप को प्राप्ति हेतु हे प्रभु मैने की है पूजन । . तबतक चरणों में ध्यान रह जबतक न प्राप्त हो मुक्तिसदन ॥११॥ ॐ ही श्री अर्हतादि पंच परमेष्ठिभ्यो अव्य निर्वपामीति स्वाहा ।। हे मगल रुप अमगल हर मंगलमय मंगल गान करूँ। मगल में प्रथम श्रेष्ठ मगल नवकारमन्त्र का ध्यान करूँ ।।१२।।
इत्याशीर्वाद जाप्यमत्र - ॐ ह्री श्री असि आ उ सा नम ।
श्री नवदेव पूजन श्री अरहत सिद्ध, आचायोपाध्याय, मुनि, साधु महान । जिनवाणी, जिनमदिर, जिनप्रतिमा, जिनधर्मदेव नव जान ।। ये नवदेव परम हितकारी रत्नत्रय के दाता हैं । विघ्न विनाशक सकटहर्ता तीन लोक विख्याता है । जल फलादि वस द्रव्य सजाकर हे प्रभु नित्य करूँ पूजन । मगलोत्तम शरण प्राप्त कर मैं गाऊ सम्यकदर्शन ।। आत्मतत्व का अवलम्बन ले पूर्ण अतीन्द्रिय सुख पाऊ । नवदेवो की पूजन करके फिर न लौट भव मे आऊ ।। ॐ ह्री श्री अहंत सिद्ध आचार्य उपाध्याय सर्वसाधु, जिनवाणी, जिन मदिर, जिनप्रतिमा, जिनधर्म नवदेव अत्र अवतर-अवतर सवौषट्, अत्र तिष्ठ-तिष्ठ ठ ठ, अत्रमम् सनिहितो भव भव वषट् । परम भाव जल की धारा से जन्म मरण का नाश करूँ। मिथ्यातम का गर्व चूर कर रवि सम्यक्त्व प्रकाश करूँ ॥१॥ ॐ ही श्री अर्हतसिद्ध आचार्योपाध्याय सर्वसाधु जिनवाणी, जिनमन्दिर, जिनप्रतिमा जिनधर्म नवदेवेभ्यो जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जल नि स्वाहा । परम भाव चदन के बल से भव आतप का नाश करूँ। अन्धकार अज्ञान मिटाऊँ सम्यकज्ञान प्रकाश करूँ। पच. ॥२॥ ॐ ही श्री अहंत सिद्धआचार्योपाध्याय सर्व साधु, जिनवाणी, जिन मन्दिर जिनप्रतिमा, जिनधर्मनवदेवेभ्यो ससार तापविनाशनाय चन्दन नि स्वाहा