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जैन पूजांजलि जो विकल्प है आश्रय युत है निर्विकल्प ही आश्रय हीन ।
जो स्वरूप में थिर रहता है वही ज्ञान है ज्ञान प्रवीण 1 1 एकान्त विनय विपरीत और सशय अज्ञान भरा उर में । यह गृहीत अरु अगृहीत पाचों मिथ्यात्व भाव उर में || इनके नाश बिना सम्यकदर्शन हो सकता कभी नहीं । मोक्ष मार्ग प्रारम्भ, बिना, समकित के होता कभी नहीं ॥७॥ पृथ्वी वायु वनस्पति जल अरु अग्नि काय की दया नहीं । यस की हिंसा सदा हुई षटकायक रक्षा हुई नहीं ॥८॥ स्पर्शन रसना धान चक्षकर्णन्द्रिय वश में हुई नहीं । पचेन्द्रिय के वशीभूत हो मन को वश मे किया नहीं 18॥ पचेन्द्रिय अरु क्रोधमान माया लोभादिक चार कषाय । भोजन, राज्य, चोर, स्त्री की कथा, चार विकथा दुखदाय ॥१०॥ निद्रा नेह मिलाकर पद्रह होते आगे अस्सी भेद । हैं सैतीस हजार पाँच सौ इस प्रमाद के पूरे भेद ।।११।। क्रोधमान माया लोभादिक चार कषाय भेद सोलह । नो कषाय मिल भेद हुए पच्चीस बध के ही उपग्रह ।।१२।। इनके नाश बिना प्रभु चेतन इस भव वन मे अटका है। विषय कषाय प्रमादलीन हो चारो गति मे भटका है ॥१३॥ मन वच काया तीनयोग ये कर्मबध के कारण हैं । पद्रह भेद ज्ञान करलो जो भव भव मे दलदारुण हैं ॥१४॥ मनोयोग के चार भेद हैं वचनयोग के भी है चार । काय योग के सात भेद है ये सब योग बन्ध के बर।।१५।। सत्य, असत्य, उभय, अनुभय, ये मनोयोग के चारो भेद । सत्य, असत्य, उभय, अनुभय, ये मनोयोग के चारों भेद ।।१६।। काय योग के सात भेद हैं औदारिक, औदारिकमिश्र । वैक्रियक, वैक्रियकमिश्र है, आहारक आहारकमिश्र ॥१७॥ कार्माण है भेद सातवाँ जो जन करते इनका नाश । अष्टम वसुधा, सिद्ध स्वपद वे पाते हैं, अविचल अविनाश IR८