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और पूजांजलि आत्मिक रच ही तो अनत सुख की पावन सायना ।
परम शुद्ध चैतन्य बहा की सहज जगाठी भावना ।। उत्तम पुज अखण्डित तदुल लाऊँ उज्ववलता पाते । भवसागर से पार उतर कर पाऊँ शिवपद अतिकारी अधि ॥३॥ ॐ ही श्री अभिनन्दननाथजिनदाय अक्षयपद प्राप्ताय मतं R | परम पारिणामिक भावों के सहज पुष्प प्रभु भवहाले । शीलस्वगुण से कामभाव हर पाऊँशिवपद अधिकारी हे अधि. Iml
ही श्री अभिनंदननायजिनेंदाय कामवाण विध्वसनाय पुष्पं नि. परद्रव्यो की भूख न मिट पाई है सुधारोग धारी । पच महावत के चरुलाऊपाऊँशिवपद अविकारी हे अभि ।।५।। ॐ ही श्री अभिननदननाथजिनेंद्राय सुधारोग विनाशनाय नवे नि । मिथ्याभ्रम के कारण अब तक छाई भीषण अंधियारी । स्वपर प्रकाशक ज्योति प्रकाश पाऊँशिवपद अविकारी हे अभि ॥६॥ *ही श्री अभिनदननाथ जिनेद्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं नि । अष्टकर्म बधन मे पडा चहुँ गति में पाया दुखभारी । ध्यान धूप से कर्म जलाऊँ पाऊँ शिवपद अविकारी हे अभि ॥७॥ ॐ ह्री श्री अभिनदननाथ जिनेंद्राय अष्ट कर्म विष्वसनाय धूपं नि । निजपरिणति रसपान करूँप्रभु पर परिणति तजभयकारी । परममोक्ष फलसिद्ध स्वगति ले पाऊँ शिवपद अविकारी हे अभि ।।८।। ॐ ह्रीं श्री अभिनदननाथजिनेद्राय महामोक्ष फल प्राप्तय फलं नि । सम्यकदर्शन ज्ञानचरितमय बन रत्नत्रय गुणधारी । निज अनर्घ पदवी को धारूँपाऊँ शिवपद अविकारी हे अभि ॥९॥ ॐ ही श्री अभिनदननाथ जिनेन्द्राय अनर्ष पद प्राप्ताय अयं नि ।
श्री पंचकल्याणक शुभ बैशाख शुक्लषष्ठी को विजय विमान स्यागआये । धन्य हुई माता सिद्धार्था रत्नसुरों ने बरसाये ॥ छप्पन दिककुमारियों ने माँ की सेवा कर सुखपाए। हे अभिनन्दन स्वामी जय जय देवों ने मंगलगाए ।