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जैन पूजाँजलि भव पथ को हरने वाला सम्यक्दर्शन अति पावन ।
शिद सुख को करने वाला सम्यक्तर परम मन भावन ।। ॐ ह्रीं श्री संभवनायजिनेन्द्राय संसारताप विनाशनाय चंदन नि । स्वानुभूति वैधव के उत्तम उम्ज्वल अक्षत वित घरा। निज स्वभाव की उज्ज्वलता से मैं आत्मत्वप्राप्त करलें संभव.।।३।। ॐ ह्री श्री संभवनायजिनेन्द्रायअक्षयपद प्राप्ताये अक्षत नि. । स्वानुभूति वैभव के कोमल नव प्रसून उर मे भरा । निज स्वभाव की मृदुसुवाससेनिज शीलत्व प्राप्तकरा संभव.।।४।।
ॐ ही श्री सभवनाथजिनेन्द्राय कामबाण विध्वंसनाय पुष्पं नि. । स्वानुभूति वैभव के पावन चरु पवित्र निज मे धरलूँ । निज स्वभाव की शुद्धवृत्ति से पर प्रवृत्तिका क्षयकरलूँ सभव ।।५।। कहीं श्री सभवनाथजिनेन्द्राय भुधारोगविनाशनाय नैवेद्य नि । स्वानुभूति वैभव प्रकाश से अन्तर ज्योतिर्मय कर लूँ । निजस्वभाव के ज्ञानदीप से मैं अज्ञान तिमिर हर लें ॥सभव ॥६॥ ॐ ही श्री संभवनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं नि । स्वानुभूति वैभव की शुचिमय ध्यान धूप उर में घरलूँ निजस्वभाव के पूर्ण ध्यान से अष्टकर्म रिपु को हरा संभव ।।७।। ॐ ही श्री सभवनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म विनाशनाय धूप नि । स्वानुभूति वैभव के पावन शिवफल अन्तर मे भर लें । निज स्वभाव अवलबन द्वारा में मोक्षत्व प्राप्त करलँ । सभव ॥८॥
ॐ ह्री श्री संभवनाथ जिनेन्द्राय महामोक्षफल प्राप्तये फल नि स्वाहा । स्वानुभूति वैभवमय दर्शन ज्ञान चरित्र हृदय घर ले । चित्स्वभावमय समयसारवैभव का स्वत्व प्राप्त कर सभव.।।९।। ॐ ही श्री सभवनाथजिनेन्द्राय अनर्ध पद प्राप्तये अयं नि ।
श्रीपंचकल्याणक नव बारह योजन की नगरी रचकर धनपति मग्न हुआ। गर्भ पूर्व छह मास रत्न बरसा कर इन्द्र प्रसन्न हुआ।