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श्री अजितनाथ जिन पूजन
२७५ सफल हुआ सम्यक्स्व पराक्रम छाया भेद ज्ञान अनुपम ।
अंतर इंदामष्ट होते ही क्षीण हो गया मिथ्याम ।। *ही श्री ऋषभदेव जिनेन्द्राय महाअयं नि. स्वाहा ।
वृषभ चिन्ह शोभित चरण ऋषभदेव उर धार ।। मन वच तन जो पूजते वे होते भव पार ।।
___ इत्याशीवाद जाप्यमत्र- ॐ ही श्री ऋषभदेव जिनेन्द्राय नम
श्री अजितनाथ जिन पूजन द्वितीय तीर्थकर जिनस्वामी अजितनाथ प्रभु को वन्दन । भाव द्रव्य सयममय मुनि बन किया आत्म का आराधन।। पच महाव्रत धारण करके निज स्वरुप मे लीन हुए । कर्म नाशकर वीतराग प्रभु स्वय सिद्ध स्वाधीन हुए।। ॐ ही श्री अजितनाथ जिनेंद्र अत्र अवतर अवतर, ॐ ही श्री अजितनाथ जिनेंद्र , अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ४,ॐ ही श्री अजितनाथ जिनेंद्र अत्रमम् सन्निहितो भव भव वषट् । परम पवित्र पुनीत शुद्ध भावना नीर उर मे लाऊँ। मैं मिथ्यात्व शल्य क्षय करके अजर अमर पद कोपाऊँ । अजितनाथ के चरणाम्बुज पर मैं न्योछावर हो जाऊँ। विषय कषाय रहित होकर मैं महामोक्ष पदवी पाऊँ ॥१॥
ॐ ह्रीं श्री अजितनाथ जिनेंद्राय जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जल नि । निर्मल शीतल भावपूर्ण शुचिमय चन्दन उर मे लाऊँ । माया शल्य नाश करके प्रभुभव आतप पर जय पाऊँ । अजित ॥३॥ ॐ ही श्री अजितनाथ जिनेंद्राय ससारताप विनाशनाय बदनं नि । धवल शुद्ध पावन स्वरूप निज भावों के अक्षत लाऊँ। शीघ्र निदान शल्य को हरकर निज अक्षय पद कोपाऊँ ||अजित ॥३॥ ॐ ह्रीं श्री अजितनाथ जिनेंद्राय अक्षयपद प्राप्ताय अक्षत नि. । आत्म ज्ञान के समयसार मय भाव पुष्प निज में लाऊँ। वीतराग सम्यक्त्व प्राप्त कर कामभावक्ष्य कर पाऊँ।अजित ॥४॥ ॐ ह्रीं श्री अजितनाथ जिनेंद्राय कामवाण विश्वसनाय पुष्पं नि ।