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श्री ऋषणदेव जिन पूजन
१७१ पूर्ण अहिंसा व्रत संगम की जब निश्चय वासुरी बजेगी ।
मोह मोम की गति क्षम होगी सुब्बातम निज साज सेवेगी ।। श्री चौबीस जिनेश के चरण कमल उर धार । मन, वच, तन, जो पूजते वे होते भव पार १५॥
इत्याशीर्वाद जाप्यमंत्र - ॐ ह्रीं श्री चतुर्विशति तीर्थकरेभ्यो नमः
श्री ऋषभदेव जिन पूजन जय आदिनाथ जिनेन्द्र जय जय प्रथम जिन तीर्थकरम । जय नाभि सुत मरुदेवी नन्दन ऋषभप्रभु जगदीश्वरम ।। जय जयति त्रिभुवन तिलक चूडामणि वृषम विश्वेश्वरम । देवाधि देव जिनेश जय जय, महाप्रभु परमेश्वरम ।। ॐ ही श्री आदिनाथजिनेन्द्र अत्र अवतर अवतर संवौषट्, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ, अत्र मम सन्निहितो भव-भव वषट् । समकित जल दो प्रभु आदि निर्मल भाव धरूं । दुख जन्म-मरण मिट जाये जल से धार करूँ।। जय ऋषभदेव जिनराज शिव सुख के दाता । तुम सम हो जाता है स्वय को जो ध्याता ॥१॥ ॐ ही श्री ऋषभदेव जिनेन्द्रायजन्मजरामृत्युविनाशनाय जल नि । समकित चदन दो नाथ भव सताप हरूँ। चरणो मे मलय सुगन्ध हे प्रभु भेट करूँ ।।जय ऋषभ देव ।।२।। ॐ ही श्री ऋषभदेवजिनेन्द्राय ससारताप विनाशनाय चदनं नि । समकित तन्दुल की चाह मन मे मोद भरे । अक्षत से पूजू देव अक्षयपद सवरे जय ऋषभ देव ॥३॥ ॐ ही श्री ऋषभदेवजिनेन्द्राय अक्षयपद प्राप्तये अक्षत नि । समकित के पुष्प सुरम्य दे दो हे स्वामी । यह काम भाव मिट जाय हे अन्तर्यामी जय ऋषभ देव ॥४॥ *ही श्री ऋषभदेवजिनेन्द्राय कामबाण विध्वंसन्मय पुर्न नि. ।