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श्री नवदेव पूजन पाप तिमिर का पुन्ब नाश कर ज्ञान ज्योति जयवंत हुई। नित्य शुर अविरुद्ध शक्ति के द्वारा महिमावत हुई ।।
जयमाला नवदेवों को नमन कर करूँ आत्म कल्याण । शाश्वत सुख की प्राप्ति, हित करूँ भेद विज्ञान ॥१॥ जय जय पच परम परमेष्ठी जिनवाणी जिन धर्म महान । जिनमंदिर जिनप्रतिमा नवदेवों को नित बन्दू धर ध्यान ॥२॥ श्री अरहंत देव मगलमय मोक्ष मार्ग के नेता हैं । सकल ज्ञेय के ज्ञातादृष्टा कर्म शिखर के भेत्ता हैं ॥३॥ हैं लोकाग्र शिखरपर सुस्थित सिद्धशिला पर सिद्धअनंत । अष्ट कर्म रज से विहीन प्रभु सकल सिद्धिदाता भगवत ॥४॥ हैं छत्तीस गुणो से शोभित श्री आचार्य देव भगवान । चार सघ के नायक ऋषिवर करते सबको शान्ति प्रदान ।।५।।
ग्यारह अग पूर्व चौदह के ज्ञाता उपाध्याय गुणवन्त । जिन आगम का पठन और पाठन करते हैं महिमावन्त ॥६॥ अट्ठाईस मूलगुण पालकऋषि मुनि साधु परमगुणवान । मोक्ष मार्ग के पथिक श्रमण करते जीवों को करुणादान ॥७॥ स्याद्वादमय द्वादशाग जिनवाणी है जग कल्याणी । जो भी शरण प्राप्त करता है हो जाता केवलज्ञानी ॥८॥ जिनमदिर जिन समवशरणसम इसकी महिमा अपरम्पार । गध कटी मे नाथ विराजे हैं अरहंतदेव साकार ॥९॥ जिनप्रतिमा अरहतों की नासाग्र दृष्टि निज ध्यानमयी । जिन दर्शन से निज दर्शन हो जाता तत्क्षण ज्ञानमयी ॥१०॥ श्री जिनधर्म महा मगलमय जीव मात्र को सुख दाता । इसकी छाया में जो आता ही जाता दूष्टा ज्ञाता ॥११॥ ये नवदेव परम उपकारी वीतरागता के सागर । सम्यकदर्शन ज्ञान चरित से भर देते सबकी गागर ।।१२।।