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श्री पंचमेक पूजन पुण्य पुण्य पाप पाप है कहते सब कर्मात्मा । ।
पुण्य कर्म भी पाप कर्म है कहते है धर्मात्मा ।। भाव सहित नन्दीश्वर की पूजन में होता है कल्याण । स्वर्ग मोक्ष पद मिल जाता है धर्म ध्यान से सहज महान ।।
इत्याशीर्वाद जाप्यमन्त्र ॐ ही श्री नन्दीश्वर सज्ञाय नम
श्री पंचमेरु पूजन मध्यलोक मे हाई बीप के पचमेरु को करूँ प्रणाम । मेरु सुदर्शन, विजय, अचल, मदिर, विद्युन्माली अभिराम ॥ मेरु सुदर्शन एक लाख योजन ऊँचा है महिमावान ।। शेष मेरु योजन चौरासी सहस्त्र उच्च हैं दिव्य महान ॥ पाँचों मेरु अनादि निधन हैं स्वर्णमयी सुन्दर सुविशाल । इन पर अस्सी जिन चैत्यालय वन्दू सदा झुकाऊँ भाल ।। इनका पूजन वन्दन करके मैं अनादि अघ तिमिर हरूँ। मन वच काया शुद्धिपूर्वक श्री जिनवर को नमन करूँ॥ ॐ ह्रीं श्री सुदर्शन, विजय, अचल, मन्दिर, विधुन्माली पचमेरु सबधी जिन चैत्यालयस्थ जिनप्रतिमा समूह अत्र अवतर अवतर सर्वोषट् अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ अत्र मम् सनिहितो भव भव वषट् । यह अथाह भव सागर जल पीकर भी तृषा न शात हुई। जन्म मरण के चक्कर में पड़कर मेरी मति भ्रान्त हुई । पंचमेरु के अस्सी जिन चैत्यालय को वन्दन कर लें। भक्ति भाव से पूजन करके मैं भवसागर दुख हर लूँ ॥१॥ ॐ ह्रीं श्री पचमेरु सम्बन्धि जिनचैत्यालयस्थ जिनबिम्बेभ्यो जल नि । भव दावानल की भीषण ज्वाला मे जल जल दुख पाया। ताप निक्दन निजगुण चन्दन शीतलता पाने आया।पिचपेरू।।२।। ॐ ह्रीं श्री पचमेरु सम्बन्धि जिनचैत्यालयस्थ जिनबिम्बेभ्यो चन्दन नि । भव समुद्र की चारों गतिमय भंवरो मे गोता खाया । अक्षय पद पाने को हे प्रभु कभी न अक्षत गुण भाया ।।पत्रमेरु. ॥३॥ *ही श्री पंचमेरु सम्बन्धि जिनचैत्यालयस्थ जिनबिम्बेभ्यो अक्षत नि ।