________________
८९
श्री सप्त ऋषि पूजन पुण्यों की अब तक मिठास है वीतरागता नहीं सुहाती ।
जड की रुचि में विन्मूरति चिन्मूरति की रुचि कभी न पाती । । पद सिद्धत्व प्राप्त करके मैं पास तुम्हारे आ जाऊँ । तुम समान बन शिव पद पाकर सदा-सदा को मुस्काऊँ ॥२९॥ जय जय गौतम गणधरस्वामी अभिरामी अन्तर्यामी । पाप पुण्य परभाव विनाशी मुक्ति निवासी सुखधामी ॥३०॥ ॐ ह्रीं श्री गौतमगणधरस्वामिने अनर्धपद प्राप्तये अर्घ्य नि ।
गौतम स्वामी के वचन भाव सहित उर धार । मन, वच, तन, जो पूजते वे होते भव पार ।।
इत्याशीर्वाद जाग्यपत्र-ॐ ह्री श्री गौतमगणधराय नम ।
श्री सप्त ऋषि पूजन जय जयति जय सुरमन्यु, जय श्रीमन्यु, निचय, मुनिश्वरम् । जय सर्वसुन्दर, पूज्य श्री जयवान, परम यतिश्वरम् ॥ जय विनयलालस और श्री जयमित्र, मुनि ऋषीश्वरम् । जय ध्यानिपति, जय ज्ञान मति जिन साधु सप्त ऋषीश्वरम् ।। जय ऋद्धि सिद्धि महान धारी, महामुनि जगदीश्वरम् । जय सकल जग कल्याणकारी, दयानिधि अवनिश्वरम् ॥ ॐ ह्री श्री सुरमन्यु, श्रीमन्यु निचय सर्व सुन्दर, जयवान, विनय लालस, जय मित्र, सप्त ऋषिश्वरा अत्र अवतर अवतर संवौषट, ॐ ही श्री सुरमन्य, श्रीमन्यु निचय, सर्व सुन्दर, जयवान, विनयलालस जयमित्र, सप्त ऋषिश्वरा अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठठ, ॐ ह्री श्री सुर मन्यु, श्रीमन्यु निचय, सर्व सुन्दर, जयवान, विनयलालस, जयमित्र, सप्त ऋषिश्वरा अत्र मम् सनिहितो भव भव वषट् । सप्त तत्व श्रद्धान पूर्वक आत्म प्रतीत वरूँ स्वामी । सप्त भयो से रहित बनू मैं जन्म मरण नाशें स्वामी ।। सुरमन्यु, श्रीमन्यु आदि जयमित्र सप्त ऋषीश्वर बन्दन । श्रद्धा ज्ञान चरित्र शक्ति से काटूं भव भव के बन्धन ॥१॥ ॐही श्री सुरमन्यु, श्रीमन्यु, निचय, सर्वसुन्दर, जयवान, विनयलालस, जयमित्र, सप्त शषिश्वर जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जल नि ।