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श्री दीपमालिका पूजन समकित का दीप जला अधिवारा दूर हुआ ।
अज्ञान तिमिर नाशा धम तम चकचूर हुआ । धीरे धीरे पाप, पुण्य शुभ अशुभ आश्रव संहारूँ। भव तन भोगों से विरक्त हो निजस्वभाव को स्वीकारूँ ॥२६॥ दशधमों को पढ़ सुनकर अन्तर में आये परिवर्तन । व्रत उपवास तपादिक द्वारा करूँ सदा ही निज चिंतन ॥२७॥ राग द्वष अभिमान पाप हर काम क्रोध को चर करूँ। जो सकल्प विकल्प उठे प्रभु उनको क्षण-क्षण दूर कसं।२८॥ अणु भर भी यदि गग रहेगा नहीं मोक्ष पद पाऊँगा । तीन लोक मे काल अनता राग लिए भरमाउँगा।।२९।। राग शुभाशुभ के विनाश से वीतराग बन जाऊँगा । शुद्धात्मानुभूति के बरा स्वय सिद्ध पद पाऊँगा ॥३०॥ प!षण मे दूषण त्यागू बाह्य क्रिया मे रमे न मन । शिव पथ का अनुसरण करूँ में बन के नाथ सिद्ध नन्दन ॥३१॥ जीव मात्र पर क्षमा भाव रख मैं व्यवहार धर्म पालूँ । निज शुद्धातम पर करुणा कर निश्चय धर्म सहज पालूँ ॥३२॥ ॐ ही उत्तमक्षमाधर्मागाय पूर्णाध्य निर्वपामीति स्वाहा ।
मोक्ष मार्ग दर्शा रहा क्षमावणी का पर्व । क्षमाभाव धारण करो राग द्वेष हर सर्व ।।
___ इत्याशीर्वाद जाप्यमत्र - ॐ ही श्री उत्तम क्षमा धर्मागाय नमः
श्री दीपमालिका पूजन महावीर निर्वाण दिवस पर महावीर पूजन कर लूँ। वर्धमान अतिवीर वीर सन्मति प्रभु को वन्दन कर लें ॥ पावापुर से मोक्ष गये प्रभु जिनवर पद अर्चन कर लें। जगमग जगमग दिव्यज्योति से धन्य मनुज जीवन कर लें।