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जैन पूजांजलि वस्त्र पुराने सदा बदलते नए वस्त्र द्वारा ।
उसी भांति यह देह बदलती जन्म मृत्यु द्वारा ।। यह परिणाम नापता है वह बाह्य चरित्र विचार का । श्रत पचमी पर्व अति पावन है भूत के अवतार का R९|| जिनवाणी की भक्ति करे हम जिनश्रत की महिमा गायें । सम्यग्दर्शन का वैभव ले भेद ज्ञान निधि को पायें ॥२०॥ रत्नत्रय का अवलम्बन ले निज स्वरुप में रम जायें । मोक्ष मार्गपर चलें निरन्तर फिर न जगत में भरमायें ॥२१॥ धन्य धन्य अवसर आया है अब निज के उद्धार का । श्रत पचमी पर्व अति पावन है भूत के अवतार का ॥२२॥ गूजा जय जय नाद जगत् मे जिन श्रुत जय जयकार का । ॐ हीं श्री परमश्रुत षटखण्डागमाय पूर्णाष्य निर्वपामीति स्वाहा ।
श्रुत पचमी सुपर्व पर करो तत्व का ज्ञान । आत्म तत्व का ध्यान कर पाओ पद निर्वाण ।।
इत्याशीर्वाद जाप्यमत्र-ॐ ह्री श्री परमश्रुतेभ्यो नम ।
श्री वीरशासन जयन्ती पूजन वर्धमान अतिवीर वीर प्रभु सन्मति महावीर स्वामी । वीतराग सर्वज जिनेश्वर अन्तिम तीर्थकर नामी ।। श्री अरिहतदेव मगलमय स्वपर प्रकाशक गुणधामी । सकल लोक के ज्ञाता दृष्टा महापूज्य अन्तर्यामी ।। महावीर शासन का पहला दिन श्रावण कृष्णा एकम । शासन वीर जयन्ती आती है प्रतिवर्ष सुपावनतम ।। विपुलाचल पर्वत पर प्रभु के समवशरण मे मंगलकार । खिरी दिव्य ध्वनि शासन वीर जयन्ती पर्व हुआ साकार ॥ प्रभु चरणाम्बुज पूजन करने का आया उर में शुभ भाव । सम्यकज्ञान प्रकाश मुझे दो, राग द्वेष का करूँ अभाव ।।