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जैन पूजांजलि समकित रवि की ज्योति प्राप्तकर नासो पापावलियां ।
___मोह कर्म सर्वथा नासकर नाशो पुण्यावलियां । । तभी सार्थक जीवन होगा सार्थक होगी यह नर देह । अन्तर घट में जब बरसेगा पावन परम ज्ञान रस मेह ॥२८॥ पर से मोह नहीं होगा,होगा निजात्म से अति नेह । तब पायेंगे अखड अविनाशी निज सुखमय शिव गेह ॥२९॥ रक्षा-बधन पर्व धर्म का, रक्षा का त्यौहार महान । रक्षा-बंधन पर्व ज्ञान का, रक्षा का त्यौहार प्रधान ॥३०॥ रक्षा-बन्धन पर्व चरित का, रक्षा का त्यौहार महान । रक्षा-बन्धन पर्व आत्म का, रक्षा का त्यौहार प्रधान ॥३१॥ श्री अकम्पनाचार्य आदि मुनि सात शतक को कसैलपन । मुनि उपसर्ग निवारक विष्णुकुमार महामुनि को वन्दन ॥३२॥
* ही श्री विष्णुकुमार एवं अकम्पनाचार्यआदि सप्तशतक मुनिभ्यो पूर्णार्य निर्वामीति स्वाहा
रक्षा बन्धन पर्व पर श्री मुनि पद उर धार । मन वच तन जो पूजते, पाते सौख्य अपार ।।
इत्याशीर्वाद जाप्तमत्र -ॐ ह्री श्री विष्णुकुमार एव अकम्पनाचार्यादि सप्तशतक
परम ऋषीश्वरेम्यो नम
निजपुर में अमृत बरसेरी अनुभव रस को प्याला पोवत अग अग सुख सरसे री। शील विनय जप तप सपम व्रत पा मेरो जिया हरसे री ।। पर परिणति कुलटा दुखदायी देख देख के तरसे री । पर विभाव को सग छोड़ के आई मैं पर घर से री। चिदानन्द चेतन मन भाये निज शुद्धातम दरसे रो।।
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