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जैन पूजांजलि देह तो अपनी नहीं है देह से फिर मोह कैसा ।
जड अचेतन रुप पुदगल द्रव्य से व्यामोह केसा ।। जय सुमतिनाथ सुमति प्रदायक, पदम प्रभु प्रणतेश्वरम् । जय जय सुपाश्र्वस्वपर प्रकाशक, चन्द्रप्रभु चन्द्रेश्वरम् ॥२॥ जय पुष्पदन्त पवित्र पावन जयति शीतल शीतलम् । जयश्रेष्ठ श्री श्रेयांस प्रभुवर, वासुपूज्य सु निर्मलम् ।।३।। जय अमल अविकल विमल प्रभु, जयजय अनन्त आनंदकम् । जय धर्मनाथ स्वधर्मरवि, जय शान्ति जग कल्याणकम् ।।४।। जय कुन्थुनाथ अनाथ रक्षक, अरहनाथ अरिंजयम् । जय मल्लि प्रभु हत दुर्नयम् जय सुनिसुव्रत मृत्यु जयम् ।।५।। जय मुक्तिदाता नमि जिनोत्तम्, नेमि प्रभु लोकेश्वरम् । जय पार्श्व विघ्नविनाशनम्, जय महावीर महेश्वरम् ।।६।। जय पाप पुण्य निरोधकम, ज्ञानेश्वरम् क्षेमकरम् ।। जय महामगल मूर्ति जय, चौबीस जिन तीर्थकरम् ।।७।।
श्री पंच परमेष्ठी पूजन अरहत, सिद्ध, आचार्य नमन, हे उपाध्याय हे साधु नमन । जय पच परम परमेष्ठी जय, भव सागर तारणहार नमन ।। मन वच काया पूर्वक करता हूँ शुद्ध ह्रदय से आह वानन । मम हृदय विराजो तिष्ठ तिष्ठ सन्निकट होउ मेरे भगवन ।। निज आत्म तत्व को प्राप्ति हेतु ले अष्ट द्रव्य करता पूजन । तुव चरणों की पूजन से प्रभु निज सिद्ध रूप का हो दर्शन ।। ॐ ह्री श्री अरहत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, सर्वसाधु पच परमेष्ठिन् अत्र अवतर अवतर सवौषट्, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ अत्रमम सनिहितो भव भव वषट् ।। मैं तो अनादि से रोगी हे. उपचार कराने आया . • हूँ। तुमसम उज्ज्वलता पाने को उज्ज्वल जल भरकर लाया हूँ ॥ मैं जन्म जरा मृत्यु नाश करूँ ऐसी दो शक्ति हृदय स्वामी । हे पच परम परमेष्ठी प्रभु भव दुख मेटो अन्तर्यामी IRAL ॐ ह्रीं श्री पचपरमेष्ठिम्यो जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जल नि ।