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श्री श्रुत कमी पूजन जिया तुम निज का ध्यान करो।
आर्त रौद्र दुर्ध्यान छोड़कर धर्मध्यान करो । । किन्तु काल की घड़ी मनुज की स्मरण शक्ति हरती रही । श्री घरसेनाचार्य हृदय में करुणा टीस भरती रही ॥६॥ द्वादशांग का लोप हुआ तो क्या होगा संसार का । श्रुत पंचमी पर्व अति पावन है श्रुत के अवतार का ७॥ शिष्य भूतवलि पुष्पदन्त की हुई परीक्षा ज्ञान की । जिनवाणी लिपिबद्ध हेतु भुत विद्या विमल प्रदान की | ताड़ पत्र पर हुई अवतरित वाणी जन कल्याण की ।। षट्खण्डागम महाग्रन्थ करुणानुयोग जय ज्ञान की ॥९॥ ज्येष्ठ शुक्ल पचमी दिवस था सुरनर मगलचार का । श्रत पचमी पर्व अति पावन है श्रुत अवतार का ॥१०॥ धन्य भूतवलि पुष्पदन्त जय श्री धरसेनाचार्य की । लिपि परम्परा स्थापित करके नई क्राति साकार की ॥११॥ देवो ने पुष्पों को वर्षा नभ से अगणित बार की । धन्य धन्य जिनवाणी माता निज पर भेद विचार की ॥१२॥ ऋणी रहेगा विश्व तुम्हारे निश्चय का व्यवहार का । श्रुत पचमी पर्व अति पावन है श्रुत के अवतार का ॥१३।। धवला टीका वीरसेन कृत बहत्तर हजार श्लोक । जय धवला जिनसेन वीरकृत उत्तम साठ हजार श्लोक ॥१४॥ महाधवल है देवसेन कृत है चालीस हजार श्लोक । विजयधवल अरु अतिशय धवल नहीं उपलब्ध एक श्लोक ।।१५।। षट्खण्डागम टीकाएं पढ मन होता भव पार का । श्रुत पचमी पर्व अति पावन है श्रुत के अवतार का १६॥ फिर तो ग्रन्थ हजारो लिक्खे ऋषि मुनियों ने ज्ञानप्रधान । चारों ही अनुयोग रचे जीवों पर करके करुणा दान ॥१७॥ पुण्य कथा प्रथमानुयोग द्रव्यानुयोग है तत्व प्रधान । ऐक्सरे करुणानुयोग चरणानुयोग कैमरा महान १८॥