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श्री वीरशासन जयन्ती पूजन
जिया तुम निज को पहचानो ।
निज स्वरुप को पर स्वस्थ से सदा भित्र जानो ।। *ही श्री सन्मति वीर जिनेन्द्र अत्र अवतर अवतर संवाफ्ट अब तिष्ठ सिष्ठ उ., अब मम सनिहितो पक-पव वषट् । भाग्यहीन नर रत्न स्वर्ण को जैसे प्राप्त नहीं करता । ध्यानहीनमुनि निजआतम का त्योअनुभवन नहीं करता ।। शासन वीर जयन्ती पर जल चढ़ा वीर का ध्यान करूँ। खिरी दिव्य ध्वनि प्रथम देशना सुन अपना कल्याणकरूँ ।। ॐ ह्रीं श्री संमतिवीरजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि । अतरंग बहिरग परिग्रह त्याग में निग्रन्थ बनें । जीवन मरण, मित्र अरि सुख दुख लाभ हानि मे साम्यबन् ।। शासन वीर जयन्ती पर, कर अक्षत भेट स्वध्यानकरूँ ।। खिरी.।।२।। ॐ हो श्री संमतिवीरजिनेन्द्राय अक्षयपद प्राप्तये अक्षतं नि । विविध कल्पना उठती मन में, वे विकल्प कहलाते हैं। बाह्य पदार्थों मे ममत्व मन के संकल्प रुलाते हैं ।। शासन वीर जयन्ती पर चंदन अर्पित कर ध्यान करूँ ॥खिरी ॥३॥ ॐ ही श्री समतिवीरजिनेन्द्राय भवताप विनाशनाय चदन नि । शुद्ध सिद्ध ज्ञानादि गुणों से मैं समृद्ध हू देह प्रमाण । नित्य असंख्यप्रदेशी निर्मल है अमूर्तिक महिमावान ।। : शासन वीर जयन्ती पर, कर भेंट पुष्य निज ध्यान करूँ ॥खिरी ॥४॥
ॐ ह्रीं श्री सन्मतिवीरजिनेन्द्राय कामवाण विध्वंसनाय पुष्प नि । परम तेज हूँ परम ज्ञान हूँ परम पूर्ण हूँ बाह्य स्वरूप । निरालम्ब हूँ निर्विकार हैं निश्चय से में परम अनूप ।। शासन वीर जयन्ती पर नैवेद्य चढा निज ध्यान करूँ ।।खिरी ।।५।। ॐ ही श्री सन्मतिवीरजिनेन्द्राय क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्य नि । स्वपर प्रकाशक केवलज्ञानमयी, निज मर्ति अमर्ति महान । चिदानन्द टंकोत्कीर्ण हूँ ज्ञान ज्ञेय ज्ञाता भगवान ।। शासन वीर जयन्ती पर मैं दीप चढ़ा निज ध्यान करूँ।। खिरी ।। ॐही श्री सन्मतिवीर जिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीप नि ।