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जैन पूजांजलि पुण्याश्रव के द्वारा स्वर्गों के सुख भोगे ।
माला जब मुरझाई तो कितने दुख भोगे ।। उस वाणी को मेरा वंदन उसकी महिमा अपरम्पार । सदा वीर शासन की पावन, परम जयन्ती जय जयकार ॥२०॥ वर्धमान अतिवीर वीर की पूजन का है हर्ष अपार ।। काल लब्धि प्रभु मेरी आई, शेष रहा थोड़ा ससार ।।२१।।
दिव्य ध्वनि प्रभु वीर की देती सौख्य अपार । आत्म ज्ञान की शक्ति से, खुले मोक्ष का द्वार ।।
इत्याशीर्वाद जाप्यमत्र - ॐ ह्री श्री सम्पूर्ण द्वादशागाय नम
श्री रक्षाबन्धनपर्व पूजन जय अकम्पनाचार्य आदि सात सौ साध मनिव्रत धारी । बलि ने कर नरमेध यज्ञ उपसर्ग किया भीषण भारी ।। जय जय विष्णुकुमार महामुनि ऋद्धि विक्रिया के धारी । किया शीघ्र उपसर्ग निवारण वात्सल्य करुणा धारी । । रक्षा-बन्धन पर्व मना मुनियो को जय जयकार हुआ । श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन घर घर मगलाचारहुआ ।। श्री मुनि चरण कमल मै वन्दू पाऊ प्रभु सम्यकदर्शन । भक्ति भाव से पूजन करके निज स्वरुप मे रहे मगन ।। ॐ ही श्री विष्णुकुमार एव अकम्पनाचार्य आदि सप्तशतकमुनि अत्र अवतर अवतर सवौषट, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ अत्र मम सनिहितो भव-भव वषट् । जन्म मरण के नाश हेतु प्रासुक जल करता हूँ अर्पण । रागद्वषे परणति अभावकर निज परणति मे करूँ रमण ।। श्री अकम्पनाचार्य आदि मुनि सप्तशतक को कहें नमन । मुनि उपसर्ग निवारक विष्णुकुमार महा मुनि को वन्दन।।१।। ॐ ह्री श्री विष्णुकुमार एव अकम्पनाचार्यादि सप्तशतकमुनिभ्य जल नि भव सन्ताप मिटाने को मैं चन्दन करता हूँ अर्पण । देह भोग भवसे विरक्त हो निज परणति मे करूँ रमण श्री ॥२॥