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जन जन में जवानदी का जीवन ज जीव
श्री वीरसासन जयन्ती पूजन मैं ज्ञाता दृष्टा चेतन बिपी है।
गुण जात अनंत सहित मैं सिद्ध स्वरूपी ।। राजगही के विपुलाचल पर प्रभु का समवशरण आया । अवधि ज्ञान से जान इन्द्र ने गणधर का अभाव पाया ॥७॥ बड़ी युक्ति से इन्द्रभूति गौतम ब्राह्मण को वह साया । गौतम ने दीक्षा लेते ही ऋषि गणधर का पद पाया ॥८॥ तत्क्षण खिरी दिव्यध्वनि प्रभु की दशांग मय कल्याणी । रच डाली अन्तर मुहूर्त में, गौतम ने श्री जिनवाणी ।।। सात शतक लघु और महाभाषा अष्टादश विविध प्रकार । सब जीवों ने सनी दिव्य ध्वनि अपने उपादान अनुसार ॥१०॥ विपुलाचल पर समवशरण का हुआ आज के दिन विस्तार । प्रभु की पावन वाणी सुनकर गंजी नभ मे जय जयकार ।।११।। जन जन मे नव जागति जागी मिटा जगत का हाहाकार । जियो और जीने दो का जीवन संदेश हुआ साकार ॥१२॥ धर्म अहिंसा सत्य और अस्तेय मनुज जीवन का सार । ब्रह्मचर्य अपरिग्रह से ही होगा जीव मात्र से प्यार ॥१३॥ प्रणा पाप से करो सदा ही किन्तु नहीं पापी से द्वषे । जीव मात्र को निज सम समझो यही वीर का था उपदेश ॥१४॥ इन्द्रभूति गौतम ने गणधर बनकर गूंथी जिनवाणी । इसके द्वारा परमात्मा बन सकता कोई भी प्राणी ॥१५॥ मेघ गर्जना करती श्री जिनवाणी का बह चला प्रवाह । पाप ताप सताप नष्ट हो गये मोक्ष की जागी चाह ॥१६॥ प्रथम, करणं, चरण, द्रव्य ये अनुयोग बताये चार । निश्चय नय सत्यार्थ बताया, असत्यार्थ सारा व्यवहार ॥१७॥ तीन लोक षद द्रव्यमई है सात तत्व की श्रद्धा सार । नव पदार्थ छह लेश्या जानो, पंच महावत उत्तम धार ॥१८॥ समिति गुप्ति चारित्र पालकर तप संयम धारो अविकार । परम शुद्ध निज आत्म तत्व, आश्रय से हो जाओ भव पार ॥१९॥