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श्री क्षमावाणी पूजन पुण्य से ही निर्जरा होती अगर तो ।
हो गया होता अभी तक मोक्ष काका सोलहकारण पुष्पांजलि दशलक्षण रत्नत्रय व्रतपूर्ण । इनके सम्यक पालन से हो जाते हैं वसुकर्म विचूर्ण।।२।। भाद्रमास मे सोलहकारण तीस दिवस तक होते हैं । शुक्ल पक्ष में दशलक्षण पचम से दस दिन होते हैं ॥३॥ पुष्पांजलि दिन पाँच पंचमी से नवमी तक होते हैं । पावन रत्नत्रय व्रत अन्तिम तीन दिवस के होते हैं।।४।। आश्विन कृष्णा एकम् उत्सव क्षमावाणी का होता है । उत्तमक्षमा धार उर श्रावक मोक्ष मार्ग को जोता है।।५।। भाद्रमास अरु माघ मास अरु चैत्र मास में आते हैं । तीन बार आ पर्वराज जिनवर सदेश सुनाते हैं ॥६॥ १"जीवे कम्म बद्ध पुट्ठ" यह तो है व्यवहार कथन । है अबद्ध अस्पृष्ट कर्म से निश्चय नय का यही कथन ।।७।। जीव देह को एक बताना यह है नय व्यवहार अरे । जीव देह तो पृथक पृथक हैं निश्चय नय कह रहा अरे ॥८॥ निश्चय नय का विषय छोड व्यवहार मॉहि करते वर्तन । उनको मोक्ष नहीं हो सकता और न ही सम्यक दर्शन ।।९।। २“दोण्हविणयाण भणिय जाणई जो पक्षातिकात होता । चित्स्वरूप का अनुभव करता सकलकर्म मल को खोता ।।१०।। ज्ञानी ज्ञानस्वरूप छोड़कर जब अज्ञान रूप होता । तब अज्ञानी कहलाता है पुद्गल बन्ध रूप होता।।११।। ३“जह विस भुव भुज्जतोवेज्जो" मरण नहीं पा सकता है । ज्ञानी पुद्गल कर्म उदय को भोगे बन्ध न करता है।।१२।।
समयसार १४१-जीव कर्म से बंधा है तथा स्पर्शित है । (२) समयसार १४३-दोनों ही नयों के कथन को मात्र जानता है । (३) समयसार १९५- जिस प्रकार वैद्य पुरुष विष को भोगता, खाता हुआ भी
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