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श्री क्षमतृतीया पूजन तत्वों के सम्यक निर्णय का वह स्वर्णिम अवसर भाया है ।
संसार सुखों का सागर के दिन दो दिन नश्वर काया है ।। पर हाय सदा हम भूले उपदेश वीर के अनुपम । जाते अधर्म के पथ पर छाया अज्ञान निविड़तम १७॥ हम विवाद के बन्यन में जकड़े हुए खड़े हैं। अवनति के गहरे गड्ढे में बेसुध हुए पड़े हैं ॥२८॥ इससे अब तो हम चेतें श्री वीर जयन्ती आयी। भूमण्डल के जीवों को नूतन सन्देशा लायी ॥१९॥ चेतो चेतो हे वीरों अब नहीं समय सोने का । आलस्य मोह निद्रा में अवसर है न खोने का ॥२०॥ कर्तव्य धर्ममय पालों अरु त्यागो कर्म निरर्थक । तब वीर जयन्ति मनाना होगा अनुपम सार्थक ॥२१॥ श्री वर्धमान सन्मति को अतिवीर वीर को वन्दन । है महावीरस्वामी का अति विनय भाव से अर्चन ।।२२।। आशीर्वाद दो हे प्रभु हम द्रव्य दृष्टि बन जायें । रागादि भाव को जयकर परमात्म परमपद पायें ॥२३॥ ॐ ही श्री चैत्रशुक्लत्रयो दश्या जन्ममगलप्राप्त श्री महावीराय अयं नि
वीर जयन्ती दे रही शुभ संदेश महान । प्राणिमात्र में प्रेमकर करो आत्म कल्याण ॥
इत्याशीर्वाद जाप्यमत्र- ॐ हो श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः ।
श्री अक्षयतृतीया पूजन अक्षय तृतीया पर्व दान का ऋषभदेव ने दान लिया । नृप श्रेयांस दान दाता थे,जगती ने यशगान किया । । - अहो दान की महिमा, तीर्थकर भी लेते हाथ पसार । होते पंचाश्चर्य पुण्य का भरता है अपूर्व भण्झर ।। मोक्ष मार्ग के महाव्रती को, भाव सहित जो देते दान । निज स्वरूप जप वह पाते हैं निश्चित शाश्वत पद निर्वाण ।।