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श्री मलय तृतीया पूजन मिथ्यात्व बंध गति मति के करता है।
सम्यक्त्व बंध गति माति के हरता है। विषय लोलुपी घोगों की ज्वाला में जल जलदुख पाता । मृग तृष्णा के पीछे पागल नर्क निगोदादिक जाता ।। क्षधा व्याधि के नाश हेतु मैं आदिनाथ प्रभु को ध्याऊं । अक्षय. ।।५।। *ही श्री आदिनाथ जिनेन्द्राय बुबा रोग विनाशनाय नवे नि । ज्ञान स्वरूप आत्मा का जिनको अडान नहीं होता । भव वन मे ही भटका करता है निर्वाण नहीं होता ।। मोह तिमिर के नाशहेतु मैं आदिनाथ प्रभु को ध्याऊ ।। अक्षय. ।।६।। ॐ ही श्री आदिनाथ जिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपनि । कर्म फलो को वेदन करके सुखी दुखी जो होता है। अष्ट प्रकार कर्म का बन्धन सदा उसी को होता है ।। कर्म शत्रु के नाश हेतु मैं आदिनाथ प्रभु को ध्याऊ । । अक्षय. ॥७॥ ॐ ही श्री आदिनाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्म दहनाय धूप नि । जो बन्धो से विरक्त होकर बन्धन का अभाव करता । प्रज्ञाछैनी ले बन्धन को पृथक शीघ्र निज से करता । । महामोक्ष फल प्राप्ति हेतु मैं आदिनाथ प्रभुको ध्याऊँ। अक्षय ॥८॥ ॐ ह्रीं श्री आदिनाथ जिनेन्द्राय महा मोक्षफल प्राप्तये फल नि. । पर मेरा क्या कर सकता है मैं पर का क्या कर सकता । यह निश्चय करने वाला ही भव अटवी के दुख हरता ।। पद अनर्थ की प्राप्ति हेतु मैं आदिनाथ प्रभु को ध्याऊ ।। अक्षय ।।९।। ॐ ही श्री आदिनाथ जिनेन्द्राय अवर्ष पद प्राप्तये अयं नि ।
जयमाला चार दान दो जगत मे जो चाहो कल्याण ।
औषधि भोजन अभय अरु सद्शास्त्रो का ज्ञान ॥५॥ पुण्य पर्व अक्षयतृतीया का हमे दे रहा है ये ज्ञान । दान धर्म की महिमा अनुपम श्रेष्ठ दान दे बनो महान ।।२।।