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जैन पूजांजलि अद्धा की बदनवारे जिनमे विवेक की लड़िया ।
संशय का लेश न किन्चित आई अनुभव की अड़िया ।। दान तीर्थ के कर्ता नप श्रेयास हुए प्रभु के गणधर । मोक्ष प्राप्त कर सिद्ध लोक मे पाया शिवपद अविनश्वर ॥ प्रथम जिनेश्वर आदिनाथ प्रभु तुम्हे नमन है बारम्बार । गिरिकैलाशशिखर से तुमने लिया सिद्धपद मगलकार ।। नाथ आपके चरणाम्बुज मे श्रद्धा सहित प्रणाम करूँ। त्याग धर्म की महिमा गाऊ मैं सिद्धो का धाम वरूँ।। शुभ बैशाख शुक्ल तृतीया का दिवस पवित्र महान हुआ । दान धर्म की जय जय गजी अक्षय पर्व प्रधान हुआ ।। ॐ ही श्री आदिनाथजिनेन्द्र अत्र अवतर अवतर संवौषट् अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ अत्रमम सन्निहितो भव भव वषट् । कमोदय से प्रेरित होकर विषयो का व्यापार किया । उपादेय को भूल हेय तत्वो से मैंने प्यार किया ।। जन्म मरण दुख नाश हेतु में आदिनाथ प्रभु को ध्याऊँ। अक्षय तृतीया पर्व दान का नृप श्रेयास सुयश गाऊँ ॥१॥ ॐ ह्री श्री आदिनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जल नि । मन वच काया की चचलता कर्म आश्रव करती है । चार कषायो की छलना ही भव सागर दुख भरती है ।। भवाताप के नाश हेतु मैं आदिनाथ प्रभु को ध्याऊँ । । अक्षय ॥२॥ ॐ ही श्री आदिनाथ जिनेन्द्राय ससारतापविनाशनायचन्दन नि इन्द्रिय विषयो के सुख क्षण भगुर विद्युतसम चमकअथिर । पुण्य क्षीण होते ही आते महा असाता के दिन फिर ।। पद अखड की प्राप्तिहेतु मैं आदिनाथप्रभु को ध्याऊं। । अक्षय ॥३॥ ॐ ह्रीं श्री आदिनाजिनेन्द्राय अक्षयपद प्राप्तये अक्षत नि । शील विनय व्रत तप धारण करके भी यदि परमार्थ नहीं । बह्य क्रियाओ में ही उलझे वह सच्चा पुरुषार्थ नहीं । काम वाण के नाश हेतु मैं आदिनाथ प्रभु को ध्याऊं । । अक्षय ।।४।। ॐ हीं श्री आदिनाजिनेन्द्राय कामबाण विश्वसनाब पुष्पं नि ।