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जैन पूजाजलि
जिय कब तक उलझेगा संसार विजल्पो में 1 कितने भव बीत चुके सकल्प विकल्पों में । ।
कार्तिक कृष्ण आमावस्या को शुद्ध भाव मन से भर लूँ । दीपमालिका पर्व मनाऊँ भव भव के बन्धन हर लूँ ॥ ज्ञान सूर्य का चिर प्रकाश ले रत्नत्रय पथ पर बढ लूँ । पर भावो का राग तोड़कर निज स्वभाव मे मै अड़लूँ || ॐ ह्रीं कार्तिककृष्ण अमावस्याया मोक्ष मंगल प्राप्त श्री वर्धमान जिनेन्द्र अत्र अवतर अवतर सवौषट् अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ अत्रमम् सन्निहितो भव भव वषट् । चिदानन्द चैतन्य अनाकुल निज स्वभाव मय जल भरलूँ । जन्म मरण का चक्र मिटाऊ भव भव की पीडा हरलूँ || दीपावलि के पुण्य दिवस पर वर्धमान पूजना कर लूँ । महावीर अतिवीर वीर सन्मति प्रभु को वन्दन कर लूँ ।। १ ।। ॐ ह्री कार्तिक कृष्ण अमावश्या मोक्ष मगल प्राप्त श्री वर्धमान जिनेन्द्र जन्मजरा मृत्युविनाशनाय जल।
अमल अखड अतुल अविनाशी निज चन्दन उर में धरलूँ ।
चारो गति का ताप मिटाऊं निज पचमगति आदर लूँ ।। दीपा ॥२॥ ॐ ही कार्तिक कृष्ण अमावस्या मोक्ष मगल प्राप्त श्री वर्धमान जिनेन्द्राय ससारताप विनाशनाय चन्दन |
अजर अमर अक्षय अविकल अनुपम अक्षत पद उरमे धरलूँ । भवसागर तर मुक्तिवधू से मै पावन परिणय कर लूँ ॥ दीपा ॥३॥ ॐ ही कार्तिक कृष्ण अमावस्या मोक्ष मगल प्राप्त श्री वर्धमान जिनेन्द्राय अक्षयपद प्राप्तये अक्षत नि ।
रूप गध रस स्पर्श रहित निज शुद्ध पुष्प मन मे भर लूँ । कामवाण की व्यथा नाशकर मै निष्काम रूप धरलूँ || दीपा ||४|| ॐ ह्री कार्तिक कृष्ण अमावस्या मोक्ष मगल प्राप्त श्री वर्धमान जिनेन्द्राय कामबाण विध्वसनाय पुष्प नि
आत्म शक्ति परिपूर्ण शुद्ध नैवेद्य भाव उर मे धर लूँ ।
चिर अतृप्ति का रागनाशकरसहल तृप्तनिजपदवरलूँ || दीपा ॥५॥ ॐ ह्री कार्तिक कृष्ण अमावस्याया मोक्षमगल प्राप्त श्री वर्धमान जिनेन्द्राय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्य नि ।