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श्री अमजयन्ती पूजन अपने स्वरूप में रहता तो यह प्राणी परमेश्वर झोता ।
ज्ञापक स्वाभाव के आश्रय से यह जीव स्वभावेश्वर होता ।। ॐ ह्रीं श्री ऋषभदेव जिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जलं नि । सहज सुगन्धित चंदन लाकं भवाताप सब विनशाऊँ। वीतराग विज्ञान ज्ञानधन निजस्वभाव में आजाऊँ।ऋषभ ।२।। ॐ ही श्री ऋषभदेव जिनेन्द्राय ससारताप विनाशनाय चन्दनं नि ।। सर्वोतम भावों के अक्षत लाऊँ अक्षय पद पाऊँ। वीतराग विज्ञान ज्ञानघन निजस्वभाव में आजाऊँ ।। ऋषभ. ॥३॥ ॐ ही श्री ऋषभदेव जिनेन्द्राय अक्षयपद प्राप्ताय अक्षतं नि । सुरतरु पुष्प सुवासित लाऊँ कामव्याधि सब विनशाऊँ। वीतराग विज्ञान ज्ञानधन निजस्वभाव मे आजाऊँ । ऋषभ ।।४।। ॐ ही श्री ऋषभदेव जिनेन्द्राय कामवाण विध्वंसनाय पुष्प नि । पुण्यभाव नैवद्य त्याग कर क्षधारोग पर जय पाऊँ। वीतराग विज्ञान ज्ञानधन निज स्वभाव मे आ जाऊँ।। ऋषभ ॥५॥ ॐ ही श्री ऋषभदेवजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य नि । अन्तरतम के नाश हेत हे नाथ ज्ञान दीपक लाऊँ। वीतराग विज्ञान ज्ञानघन निजस्वभाव मे आ जाऊँ ।। ऋषभ ॥६॥ ॐ ही श्री ऋषभदेव जिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीप नि । अष्टकर्म की धूप जलाऊ शुक्ल ध्यान अनुपम ध्याऊँ। वीतराग विज्ञान ज्ञानघन निजस्वभाव मे आ जाऊँ ।ऋषभ ॥७॥ ॐ ही श्री ऋषभदेव जिनेन्द्राय अष्टकर्मविध्वसनाय धूप नि । महामोक्ष फल प्राप्त करें निश्चय रत्नत्रय उर लाऊँ। वीतराग विज्ञान ज्ञानधन निज स्वभाव में आ जाऊँ । ऋषभ ॥८॥ ॐ ही श्री ऋषभदेव जिनेन्द्राय महा मोक्षफलप्राप्तये फल नि । शुद्धभाव का अर्थ्य बनाऊँ पद अनर्थ्य अविचल पाऊँ। वीतराग विज्ञान ज्ञानधन निजस्वभाव में आ जाऊँ ।। ऋषभ ॥९॥ ॐ ह्रीं श्री ऋषभदेव जिनेन्द्राय अनर्ष पद प्राप्ताय अयं नि. ।