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श्री महावीरजयन्ती पूजन दर्शन शान चरित्र नियम है, जो कि नियम से करने योग्य ।
कारण नियम त्रिकाल गुरव, सहज स्वभाव आश्रय योग्य ।। एक सहस्त्र वर्ष तप करके निज स्वभाव का ध्यान किया। पाप पुण्य परभाव नाशकर अद्भुत केवलज्ञान लिया ॥१३॥ समवशरण रच इन्द्रसुरो ने किया अपूर्व ज्ञानकल्याण । मोक्ष मार्ग सदेश आपने दिया जगत को श्रेष्ठ प्रधान १४॥ भरत क्षेत्र में बन्द मोक्ष का मार्ग पुन प्रारम्भ किया । पत्र अनन्तवीर्य ने शिव पद पा यह क्रम आरम्भ किया ॥१५॥ प्रभु ने एक लाख पूरब तक भरत क्षेत्र मे किया विहार । अष्टापद कैलाश शिखर से आप हुए भव सागर पार ॥१६॥ योग निरोध पूर्ण करके प्रभु ने पाया पद निर्वाण । सिद्ध स्वपद सिंहासन पाया वसु कर्मों का कर अवसान ।।१७।। वृषभसेन गणधर चौरासी गणधर मे थे मुख्य प्रधान । कर रचना अन्तमुहुर्त मे द्वादशाग की हुए महान ॥१८॥ नाथ तत्व उपदेश आपका हम भी हदयगम कर लें ।। आत्मतत्त्व निज की प्रनीति कर हम सब मिथ्यातम हरले ॥१९॥ तज पर्याय दृष्टि दुखदायी द्रव्य दृष्टि ही बन जाये । ध्रुव स्वरूप का अवलबन ले सादि अनन स्वपद पाये ॥२०॥ अपने अपने परिणामो के द्वारा पाये आत्म प्रकाश । वीतराग निर्ग्रन्थ मार्ग का जागा है उर में विश्वास ॥२१॥ ॐ ह्री श्री ऋषभनाथ जिनेन्द्राय पूर्णायँ नि । ऋषभ जयन्ती पर्व की गूज रही जयकार । वीतराग जिनमार्ग ही एक जगत मे सार ॥२२॥
इत्याशीर्वाद जाप्ययन्त्र-ॐ हीं श्री ऋषभनाथ जिनेन्द्राय नम
श्री महावीरजयन्ती पूजन महावीर की जन्म जयन्ती का दिन जग में है विख्यात । चैत्र शुक्ल की त्रयोदशी को हुआ विश्व में नवल प्रभात ।।