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श्री दीपमालिका पूजन पर द्रव्यों में कहीं न सुख है तब इनमें सुख की आशा ।
पान शरीर परिवार में सब हो ख परिमापा ।। पूर्ण ज्ञान कैवल्य प्राप्ति हित ज्ञान दीप ज्योतित कर लूँ। मिथ्या प्रमतम मोह नाश कर निजसम्यक्त्व प्राप्त करा दीपा ॥६॥ * ही कार्तिक कृष्ण अमावस्याया मोक्षमगल प्राप्त श्री वर्धमान जिनेन्द्राय मोहन्धकार विनाशनाय दीप नि। पुण्य भाव को धूप जलाकर घाति अघाति कर्म हर लें । क्रोधमान माया लोभादिक मोहदोष सब क्षय कर लूँ ॥दीपा ॥७॥ ॐ ही कार्तिक कृष्ण अमावस्याया मोक्षमगल प्राप्त श्री वर्धमान जिनेन्द्राय अष्टकर्म विनाशनाय धूप नि। अमिट अनन्त अचल अविनश्वर श्रेष्ठ मोक्षपद उर धर लूँ । अष्ट स्वगुण से युक्त सिद्ध गति पा सिद्धत्व प्राप्त कर लूँ ।। दीपा ॥८॥ ॐ ह्री कार्तिक कृष्ण अमावस्याया मोक्षमगल प्राप्त श्री वर्धमान जिनेन्द्राय महा मोक्षफल प्राप्ताय फल नि। गुण अनन्त प्रगटाऊँ अपने निज अनर्घ पद को वरलूँ । शुद्ध स्वभावी ज्ञान प्रभावी निज सौन्दर्य प्रगट कर लूँ ॥दीपा ।।९।। ॐ ही कार्तिक कृष्ण अमावस्याया महा मोक्षमगल प्राप्त श्री वर्धमान जिनेन्द्राय अनर्षपद प्राप्तये अयं नि।
श्री पंचकल्याणक शुभ अषाढ़ शुक्ल षष्ठी को पुष्पोत्तर तज प्रभु आये । माता त्रिशला धन्य हो गई सोलह सपने दरशाये ।। पन्द्रह मास रत्न बरसे कुण्डलपुर मे आनन्द हुआ । वर्धमान के गोत्सव पर दूर शोक दुख द्वन्द हआ ।।। ॐ ही आषाढ शुक्ल षष्ठया गर्भमगलप्राप्त श्री वर्धमान जिनेन्द्राय अयं नि । चैत्र शुक्ल की त्रयोदशी को सारी जगती धन्य हुई। नृप सिद्धार्थसज हर्षाये कुण्डलपुरी अनन्य हुई । मेरु सुदर्शन पाण्डुक वन में सुरपति ने कर प्रभु अभिषेक । नृत्य वाद्य मंगल गीतो के बस किया हर्ष अतिक ॥२॥ ॐ चैत्र शुक्ल त्रयोदश्या जन्ममगल प्राप्त श्री वर्धमान जिनेन्द्राय अयं नि ।