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श्री कुन्दकुन्दाचार्य पूजन में निर्विकल्प हसबबुर, इतना खो मगीकार को ।।
रापयोग मय परम पारिथामिक स्वभाव स्वीकार करो ।। समयसार वैभव के न्योतिर्मय दीपक डर में लाऊँ। *दसण पल्टा-पटा मिथ्या मोह तिपिर हर सुख पाऊँ । कुन्द. In *ही श्री कुन्द कुन्दचार्य देवाय-मोहान्धकाय विनाशनाय दीप नि. समयसार वैभव का शुचिपय ध्यान धूप अ में ध्याऊँ। ८"ववहारोभ्भूयत्थों" निश्चय आश्रित हो शिव पद पाऊँ ।कुन्द ।।७।। ॐ ही श्री कुन्दकुन्दाचार्यदेवाय अष्टकर्मविष्वंसनाय पनि । समयसार वैभव के भव्य अपूर्व पनोरम फल पाऊँ। ९"णियम मोक्ख उवायों द्वारा महामोक्ष पद प्रगटाऊँ। ।कुन्द ॥४॥ ॐ ही श्री कुन्दकुन्दाचार्यदेवाय महामोक्षफलं प्राप्ताय अयं नि । समयसार वैभव का निर्मल भाव अर्घ उर में लाऊँ। १०"अहमिक्कोखलुसखों चिंतनकर अनपद को पाऊँ।।कुन्द ॥९॥ ॐ ही श्री कुन्दकुन्दआचार्यदेवाय अनर्यपद प्राप्ताय फल नि ।
जयमाला मगलमय भगवान् वीर प्रभु मगलमय गौतम गणधर । मगलमय श्री कुन्द-कुन्द मुनि, मगल जैन धर्म सुखकर ॥१॥ कन्नड प्रांत बड़ा दक्षिण मे कोण्ड कुण्ड था ग्राम अपूर्व । कुन्दकुन्द ने जन्म लिया था दो सहस्त्र वर्षों के पूर्व पार॥ ग्यारह वर्ष आयु थी जब तुपने स्वामी वैराग्य लिया । श्रेष्ठ महावत धारण करके पुनिपद का सौभाग्य लिया ॥३॥ एक दिवस जंगल में बैठे घोर तपस्या मे थे लीन । कवन सी काया तपती थी आत्म ध्यान में थे तल्लीन ॥४॥ उसी समय इक पूर्व जन्म का मित्र देव व्यन्तर आया । देख तपस्या रत भू पर आ श्रख से मस्तक नाया ।।५।। (७) अष्ट.पाहुड़-जो पुरुष दर्शन से प्रष्ट है, वे प्रष्ट है। (८) समय सार १५ व्यवहार नब अभूतार्थ है । (९) नियम सार४-लद्रयरुप) नियम मानका उपाय (१०) समय सार १८,७३ में निश्चय से एक हूँ, शुरहूं।
२५) नियम मोड का उपाय है।