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जैन पूजांजलि यह निकृष्ट पर परिर्णात तुझको, नर्क निगोद बताएगी ।
सर्वोत्कृष्ट स्वय की परिणति तुझे मोक्ष ले जाएगी ।। कुन्द -कुन्द आचार्य देव की भाव सहित करके पूजन । निजस्वभाव के साधन द्वरा मोक्षप्राप्ति का करूँयतन ।। १“परिणामों बधो परिणामो मोक्खों करूँ आत्मदर्शन । सिद्ध स्वपद की प्राप्ति हतु मैं निज स्वरूप में करमन ।
ॐ ह्रीं श्री कुन्द कुन्द आचार्यदेव चरणाग्रेषु पुष्पाजलि सिपामि ।। समयसार वैभव के जल से उर मे उज्ज्व लता लाऊँ। २“दसण मूलोधम्मो सम्यकदर्शन निज में प्रगटाऊँ ।। कुन्द-कुन्द आचार्य देव के चरण पूज निज को ध्याऊँ। सब सिद्धो को वदनकर ध्रुव अचल सु अनुपमगति पाऊँ ॥१॥ ॐ ह्री श्री कुन्द-कुन्द आचार्यदेवाय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जल नि । समयसार वैभव चन्दन से निज सुगन्ध को विकसाऊँ । ३“वत्थु सहावो धम्मो” सम्यकज्ञान सूर्य को प्रगटाऊँ। (कुन्द ।।२।। ॐ ह्रीं श्री कुन्द-कुन्द आचार्यदेवाय ससारतापविनाशनाय चन्दन नि । समयसार वैभव के उत्तम अक्षत गुण निज मे लाऊँ । ४"चारित्त खलु धम्मो” सम्यकचारित रथ पर चढ जाऊँ ।।कुन्द ॥३॥ ॐ ही श्री कुन्द-कुन्दचार्यदेवाय अक्षयपद प्राप्तये अक्षत नि समयसार वैभव के पावन पुष्पों में मैं रम जाऊँ। ५“दाण पूजा मुख्खयसावयधम्मों" शीलस्वगुण पाऊ । ।कुन्द ॥४॥ ॐ ह्री श्री कुन्द-कुन्द आचार्यदेवाय काम बाण विध्वंसनाय पुष्प नि समयसार वैभव के मनभावन नैवेद्य हृदय लाऊँ। ६"जो जाणदि अरिहत" निजज्ञायक स्वभावआश्रय पाऊँ ।। कुन्द ।।५।। ॐ हीं श्री कुन्द-कुन्द आचार्यदेवाय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य नि (१) परिणामों से वध और परिणामों से मोक्ष होता है । (२) अष्ट पा हुड २-धर्म का मूल सम्यकदर्शन है । (३) वस्तु स्वभाव ही धर्म है। (४) प्रवचन सार ७-चरित ही धर्म है । (५) रयण सार १०-श्रावक धर्म में दान पूजा मुख्य है । (६) प्रवचन सार ८०-जो अरहंत को जानता है।